बरसती,भीगती मचलती जिन्दगी !!!

जुगनुओं सी लगती है जिन्दगी
जब साथ होती हो तुम,
घोर अँधेरे में चमकती, दमकती,
मुस्कुराती जिन्दगी |
एक दर्द का साया उठता है
न जाने क्यों बस मेरी तरफ बढ़ता है,
डर जाता हूँ, अंदर से हिल जाता हूँ ,
मेरे लम्हों में सूनापन बढ़ने लगता है
कि हौले से आती हो तुम,
तुम्हारी गर्म छुवन से मेरे ठंडे हाथ
नर्म सा पड़ने लगते हैं
तुम्हे पास पाकर सारे दर्द जाने कहाँ चले जाते हैं
कुछ रह जाता है तो वह,
भोर के फूल सी महकती, चहकती
झूमती जिन्दगी |
हर तरफ हर जगह एक भीड़ सी है
और हर इंसान की तरह मै भी यहाँ तनहा,
कि गुजरती हो तुम मेरे करीब से
हमराह सी नजरें गिरती हैं मुझपर
तन्हापन के बादल छंटने लगते हैं
और रह जाती है तो बस
मुलायम बूंदों सी बरसती,भीगती
मचलती जिन्दगी |

दो सहेलियां !!!

वक्त की दहलीज पर खड़ा मै निहारता रहता हूँ
एक तरफ दूर तक फैली मुस्कुराती ख़ुशी को 
तो दूसरी तरफ पसरी खामोश उदासी को |
मुझे याद है जब दोनों सहेलियां हुआ करती थीं
एक दूसरे का हाथ पकड़ साथ-साथ चलती थी |
दोनों रूप भी बदलती थीं ,
कभी ख़ुशी उदासी बन जाती थी
तो कभी उदासी ख़ुशी का रूप ले लेती थी
दोनों मचलते हुए मेरे पास आती थीं,
मै उन्हें पहचान ही नहीं पाता था
और दोनों को ही गले से लगा लेता था |
लेकिन वक़्त की जंजीरों में बंधा,
मै न जाने कब बहुत दूर निकल गया
और जब पीछे मुड़कर देखा तो पाया
अनजाने में ही मैंने उनका घर बदल दिया था
उन्हें अलग कर दिया था |
ख़ुशी मुझे अच्छी लगती थी
मैंने उसे अपने ओंठों पर बिठा लिया
और उदासी को दूर आँख के कोने में छिपा दिया |
 इस तरह तोड़ दिया मैंने उनके बीच पनप रहे
कभी न मिटने वाले मुबब्बत के सिलसिले को |
दोनों कभीं नही मिल पाती हैं अब
न कभी ख़ुशी आँखों तक पहुँच पाती है
और न ही मै कभी ओंठों पर उदासी को आने देता हूँ | 

बहुत करीब से जानता हूँ उसको !!!

मै जानता हूँ
बहुत करीब से जानता हूँ उसको,
उसकी मासूम सी हंसी में
उसके मुरझाये ओंठो को
अपनी आँखों से छुआ है मैंने |
उसके हाथों के ठंडे स्पर्श में
उसकी गर्म साँसों को
अपनी धड़कन से सुना है मैंने |
पागल सी उसकी बातों में
छुपे अपनेपन के अंदाज को
अपने ओंठों से पिया है मैंने |
उसकी अल्हड़ सी जवानी में
उसके बचपन की कहानी को
पूरे दिल से जिया है मैंने |
हाँ, मै जानता हूँ ,
बहुत करीब से जानता हूँ उसको |


वो आप की बाहों में हो |

हर दिन खिला हुआ तो  फूलों सी महक रातों में हो |
सोचो किसी सितारे को और चाँद आपके हाथों में हो |
क्या हकीकत क्या सपना, एक नींद का ही तो फर्क है
आँख खोलो तो मिल जाए वो, जो आपके ख़्वाबों में हो |
बात बोलो नज़ारे हसें, मुस्कुरा दो तो शाम हो जाए,
फिजा दीवानी हो आपकी, ख़ुशी आपके क़दमों में हो |
जो अधूरा रह गया, रह गया,अब इतना कर दो मौला
जिसे पूरे दिल से मांगों आप, वो आप की बाहों में हो |



तुम यूँ ही अच्छे लगते हो !!!

अभी कुछ न कहो, तुम यूँ ही खामोश अच्छे लगते हो |
भोर की किरण में फूल सा खिलते हुए अच्छे लगते हो |
कोई कह दे ,कि आइना में चेहरा संवरता है तो मत सुनना 
इन्ही उलझी जुल्फों में तुम हँसते हुए अच्छे लगते हो |
आखिर ये दिल का मामला है, जाकर मिल आओ उससे भी

उसकी आँखों में खुद को तुम ढूंढते हुए अच्छे लगते हो |
नजारों का इशारा है खुद को मिटा दो इन लम्हों के दामन में 
नादान पलों के झूले में तुम झूलते हुए अच्छे लगते हो |
मंजिलो का क्या है ?देख लेना मिल जायेंगी ये भी एक दिन 
मत भागो इनके पीछे, तुम चलते हुए ही अच्छे लगते हो |

अफ़सोस मत कर मेरे यारा !!!

कोई भीड़ में रोता है तो कोई तन्हाई में हँसता है मेरे यारा |
तू भी अब सोच मत, जिन्दगी जैसी है बस जी ले मेरे यारा |
माना वो बहुत खूबसूरत थे, तेरे अपने थे, मगर अब क्या हो ?
वो सपने दिन के थे और अब तो साँझ हो गयी है मेरे यारा |
यकीनन वो बादल फिर से आयेंगे और बरसेंगे झूम-झूम कर
जो बिखर गये पानी बनकर, उनका अफ़सोस मत कर मेरे यारा |
और ये यादों की साजिश तो सदियों से रचता आया है ये जहाँ,
भूलकर सब तू आगे बढ़ता जा, पीछे मुड़ कर न देख मेरे यारा |

जिन्दगी कट ही जाती है !!!

एक लम्हा, एक शब्द, एक गलती सब कुछ मिटा देती है | हमें आसमान से जमीन पर ला पटकती है | पल भर में हमारी खुशियों को गम में बदल देती है | हमें असहाय बना देती है | हमें पागल कर देती है | कब, कहाँ, कैसे कौन सा रिश्ता टूट जाए कुछ कहा नही जा सकता | देखा जाए तो रिश्ते शाखों पर झूलती पत्तियों की तरह होते हैं | शाखों पर पत्तियां नकलती हैं, बढती हैं, हवा के संग-संग मस्ती में झूमती हैं | लेकिन अचानक हवा का एक तेज झोंका उस पत्ती को उस शाखा से अलग कर ना जाने कहाँ ले जाता है | शाखा और पत्ती की ये दोस्ती, ये रिश्ता, ये प्यार पल भर में समाप्त हो जाता है | सब कुछ बिखर जाता है | कुछ रह जाता है तो वह है बिखरे हुए चुनिंदा अहसास, सकुचाई सी सहमी सी टुकड़ों में बंटी हुई कुछ यादें और उन यहाँ वहां फैले उन यादों के निशान | एक बार महसूस करिये उस अहसास को जब बेड के चादर की सिकुड़न जैसी की तैसी ही रहती है लेकिन उस बेड पर सोने वाला बहुत दूर जा चुका होता है | आप उस सिकुड़न को देखकर कभी मुस्कुराते हैं तो कभी रोते हैं | किसी की यादों को बटोरने की खातिर आप उस सिकुडन को भी सहेज लेना चाहते हैं | जब आप हर रोज उसी जगह पर जाकर घंटों बैठे रहते हैं जहाँ वह कभी आपके साथ बैठा करता था | दिल की बातें होती थीं, कुछ वादे होते थे, थोड़ी सी तकरार होती थी और फिर बड़ी देर तक हंसी की लहरें उठती रहती थीं | जब घर के कोने में पड़ी उसकी टूटी चप्पल ही आपके लिए सब कुछ हो जाती है | जब डायरी में रखे मुरझाये हुए फूल को आप सौ बार देखते हैं | आप उस गाने को सौ बार सुनते हैं जिसे आप कभी सुनना नही चाहते थे लेकिन उसने जबरदस्ती आपको सुनाया था |

सच में इन लम्हों में कितना प्यार है, कितना अपनापन हैं | यही कुछ लम्हे हैं जब हम जिन्दगी जीते हैं, बाकी समय तो बस हम जिन्दगी गुजारते हैं | तो क्यों न ऐसे ही कुछ और लम्हे जियें | किसी को अपना बनायें, उसके करीब जाएँ | इतना करीब कि उसकी धड़कनों की धक्-धक् भी हम आराम से सुन सकें | उसके साँसों की गर्मी को हम महसूस कर सकें | उसके बिना बोले उसकी मन की बात समझ जाएँ | कभी हम उससे रूठें तो कभी उसे मनाएं | और ऐसे ही उम्र गुजार दें | बाकी.............जैसे तैसे जिन्दगी तो सबकी कट ही जाती है |   

जिन्दा हो तो जिन्दगी है !!

जिन्दा हो तो जिन्दगी है, रफ़्तार की अब क्या कहें ?
कभी धीमी, कभी तेज तो कभी ठहर जाती है जिन्दगी | 
तनहा सफ़र,आँखें रुखी,ओंठ प्यासे, हर कदम में सूनापन 
हमसफ़र मिलता नहीं कि सुहानी हो जाती है जिन्दगी |
कोई हर वक़्त साथ रहा, और दोस्त भी न बन पाया  
किसी को एक लम्हे में अपना बना जाती है जिन्दगी |
कैसी माया है ये कि एक पल में कोई जी लेता है सदियाँ
अफ़सोस, किसी के लिए वहीँ छोटी पड़ जाती है जिन्दगी |

हर जर्रे में हमारी दास्ताँ हो !!!

मदहोशी का आलम हो, न सुबह, न शाम हो
तू सामने रहे नजर के, न भूख हो, न प्यास हो |
हर गुफ्तगू तेरी हो, पर एक चाहत मेरी हो
मैं सुन लूँ तुझे, तू आवाज हो चाहे बे-आवाज हो |
तेरे आंसू मेरे बने, मेरी हंसी तुझपे मरे
ख़ुशी तेरी मुट्ठी में हो, मेरा वक़्त तेरा गुलाम हो |
मुझे कोई अच्छा न लगे, कभी कुछ बुरा न लगे
ऐतबार हो तो तुझपर हो, रुसवाई हो तो तुझसे हो |
लहर चींखें देखकर मुझे, साहिल मुझसे तेरा नाम पूछे 
हर तरफ हमारा शोर हो, हर जर्रे में हमारी दास्ताँ हो | 

वो खुदा था मेरा !!!

कहना तो बहुत कुछ था लेकिन कभी कुछ कह नही पाया |
सच कहूँ तो अपने लब्जों से उसे कभी मैं छू नही पाया |
चाहता था कि मेरी हर सुबह उसके दीदार से ही शुरू हो
क्या करता? उसके कमरे का आइना मैं कभी बन नहीं पाया |
वो खुदा था मेरा उसके लिए तो मुझे मरना भी मंजूर था
वक़्त कुछ ऐसे चला कि मै कुछ भी साबित कर नही पाया |
आज भी रहता हूँ उसी खंडहर में जहाँ से गुजर गया था वो
लौट आएगा वो, इस उम्मीद को मैं दिल से मिटा नही पाया |

जो खुद को मिटाने चला था !!!

किसी कोने में रो रहा है वो, जो सभी को हंसाने चला था |
अब कौन याद करता है उसे, जो खुद को मिटाने चला था |
ये दुनिया कितनी जालिम है जो उसे भी चोर कह दिया 
वह तो  बस वक्त से दो लम्हा खुद के लिए चुराने चला था |
कभी दर्शन तो न हुए, लेकिन मंदिर के चौखट पर मर गया वो
गरीब, जो आज अपने भगवान को खाली हाथ पूजने चला था |
और देख लो हार कर वो भी वापस लौट आया है “प्रकाश”
परिंदा जो कल बादलों को चीर आसमान को छूने चला था | 

बंधन, जो जाने नही देता !!!

थक सी गयी है अब वह ,
कच्चे रिश्ते निभाते- निभाते 
बहुत परेशान हो गयी है वह 
इन रिश्तों के बोझ तले दबकर
नही चाहती है अब वह 
और किसी का साथ
नही चाहती है अब वह 
पकड़ कर चलने को किसी का हाथ 
वह आजाद उड़ना चाहती है 
अपने पंखों के सहारे 
इन मदमस्त हवाओं के साथ,
नीले नीले बादलों के बीच,
लेकिन जैसे ही वह अपने कदम आगे बढाती है 
उसे याद आ जाता है 
वो सुन्दर हँसता हुआ चेहरा 
वो उसके बाहों की नरमी 
उसके साँसों की गर्मी 
जिनमे वह अक्सर ही डूब जाया करती थी |
इन्ही यादों के संग जन्म लेती है एक तीव्र इच्छा 
कि जाने से पहले देख लूँ उसे बस एक बार
बस "अंतिम  बार" इसके बाद कभी नहीं 
और उसे देखने के बाद वह कहीं जा नही पाती 
उसकी यही चाहत उसे रोक लेती है 
और उसका "अंतिम बार" कभी नही आता |

फिर भी वे दोनों एक साथ हैं !!!

वे लड़ते हैं, झगड़ते हैं, एक दूसरे पर इल्जाम लगाते हैं और कहते हैं कि अब हम कभी बात नही करेंगे | और एक हफ्ते तक सच में दोनों बात नहीं करते हैं लेकिन आठवें दिन, आधी रात को वह खुद को रोक नही पाती और उसे मैसेज कर देती है “क्या हुआ ? क्या सच में मुझसे बात नहीं करना चाहते” | वह जवाब में कहता है “सो जाओ, रात बहुत हो गयी है” | बस फिर क्या ? एक बार फिर दोनों के बीच महाभारत शुरू हो जाती है | दोनों फिर से लड़ते हैं, झगड़ते हैं, एक दूसरे पर इल्जाम लगाते हैं और लड़ते लड़ते सो जाते हैं |

वह जब बीमार हो जाती है तो उसकी सेवा में वह अपने दिन रात एक कर देता है | दोनों एक दूसरे को बड़े ही प्यार से मिलते हैं, बातें करते हैं | लेकिन ठीक होने पर वह उसे थैंक्स भी नही बोलती | बस दोनों सामान्य बातें करते हैं, एक दूसरे से हंसी मजाक करते हैं और फिर ना लड़ने का वादा करते हैं | लेकिन इस रिश्ते में यह वादा हर बार टूट जाता है | एक दिन वह कहता है कि वह उससे ज्यादा बात नहीं करती | बस फिर क्या ? फिर से दोनों लड़ते हैं, झगड़ते हैं, एक दूसरे पर इल्जाम लगाते हैं और कहते हैं कि अब हम कभी बात नही करेंगे |  

यह कैसा रिश्ता है जहाँ झगड़ते हुए भी दोनों एक दूसरे को छोड़ना नही चाहते ? क्या यह प्यार है ? क्या यह दोस्ती है ? क्या दोनों दुश्मन हैं ? खैर, इस रिश्ते का कोई नाम हो या ना हो लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि वह दोनों आज भी एक दूसरे के साथ हैं | शायद वह जानते हैं कि इस गुमनाम रिश्ते के बिना वह दोनों ही अधूरे हैं |   

दुनिया को तेरी तरफ तकने ना दूँ !!!

अब लौट भी आओ कि तेरे बगैर किसी सपने को सजने ना दूँ |
अपनी किस्मत के पन्नों पर तुम्हे लिख दूं, फिर मिटने ना दूँ |
जो हो गया अब उसका क्या, वो किस्मत न तेरी थी न मेरी थी
तू हो जा रेत, तुझे मुठ्ठी में भर लूँ, इस बार फिसलने ना दूं |
आजाद ख़याल को वो पंछी, जो उड़ा करता था बड़ी दूर तक
तू भी उड़ आजाद ख्यालों में, तेरी ऊँचाइयों से तुझे गिरने न दूँ |
और, वो चिराग फिर से जल उठेगा, जो आंधी ने धोखे से बुझाए थे
मैं दीपक की लौ में तुझे निहारूं, दुनिया को तेरी तरफ तकने ना दूँ | 

दूसरी दुनिया !!!

मैंने घबराकर अपने बाएं हाथ से उसकी गर्दन अपनी तरफ घुमाई और उसके चेहरे की तरफ देखा | लेकिन यह क्या ? उसकी आँखें अभी भी मुझे देख रही थीं लेकिन उन आँखों में कोई हलचल नहीं थी | शायद उसके कान अभी भी मेरी आवाज सुन रहे थे लेकिन उसके ओंठ कुछ भी कहने के लिए हिल नहीं रहे थे | मेरा दायाँ हाथ अभी भी उसके हाथ में था लेकिन उसकी पकड़ कमजोर पड़ गयी थी | मेरी चीख सुनकर सतीश और लता अंदर चुके थे | जूस अभी भी मेज पर रखा हुआ था | मैंने कोमल का हाथ छोड़ दिया और एक दूसरी ही दुनिया में खो गया | ऐसी दुनिया जहाँ शीतल हवा ने अचानक आंधी का रूप ले लिया हो और सब कुछ उड़ाकर ले जा रही हो | जहाँ मैं समुद्र के किनारे बैठा मखमली लहरों से अपने पैर भिगो रहा हूँ कि अचानक उन लहरों ने सुनामी का रूप ले लिया और मुझे डुबाने लगी हो | एक ऐसी दुनिया जहाँ फूल भी मुझे चुभते हो, जहाँ सुबह काली होती हो, जहाँ शाम भी वीरान हो, जहाँ रातें चांदनी नहीं आंसू बरसाती हों, जहाँ नींद में रोमेंटिक सपनों की जगह डरावने सपने आते हों, जहाँ ख़ुशी की कोई लकीर ना हो और हर तरफ उदासी का राज हो, जहाँ लोग बस कहने को जिन्दा हैं...........| कुछ पलों के लिए तो मैं भी उस दुनिया का हिस्सा बन गया | उदास..........शांत............शोक में डूबा..........ख्यालों में खोया...........आँखों में आंसू............दिल में दर्द...........और कोमल की यादों को समेटे मैं वहीं बैठा रहा और कोमल को मेरी आँखों के सामने से लेकर वो चले गये | जूस अभी भी टेबल पर रखा हुआ था |