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आज कोमल को गुजरे हुए छः महीने हो चुके हैं | लेकिन लगता ही नहीं कि कोमल अब हमारे बीच नहीं है | पहले मैं डरता था कि लता को कोमल के बारे में बताऊंगा तो कहीं उसे बुरा लग जाये | लेकिन अब तो मैं और लता घंटों कोमल के बारे में बातें करते रहते हैं | बहुत सी बातें जो शायद मैंने डायरी में नहीं लिखी थी याद आने पर मैं लता को बताता हूँ और उसकी नादान बचकानी बातों पर हम देर तक हँसते रहते हैं |
लेकिन कुछ बातें थीं जो कोमल के साथ ही चली गयीं | अब कोई मुझे पागल नहीं कहता | मुझसे फेसबुक पर कोमल की तरह कोई बात भी नहीं करता | अब मुझसे कोमल की तरह कोई नजरें भी नहीं मिलाता | अब कोई मुझे कुरकुरे खाकर चिढ़ाता नहीं है | जब भी ये सब बातें मुझे याद आती हैं तो ओंठों पर मुस्कान तैर जाती है लेकिन आँखें नम हो जाती हैं |      
कोमल चली गयी | इस जिन्दगी से बहुत दूर | लेकिन हमें बता गयी कि जिन्दगी एक बहती नदी की तरह है | लहराती, बलखाती अपनी राहें खुद बनाती एक नदी | एक ऐसी नदी जो बहुत चंचल है, नादान है, नासमझ है मगर बहुत प्यारी है | जो भी उसके पास आता है वह बाहें फैलाकर उसे अपने से मिला लेती है, अपना बना लेती है | लोग घंटों उसके पास बैठकर उसकी सुन्दरता देखना चाहते हैं | उसे प्यार करना चाहते हैं |
लेकिन कोमल यह नहीं समझ पाई कि हर नदी का एक ठहराव होता है | एक ऐसा ठहराव जिसके आगे जाने की भूल उसे नहीं करनी चाहिए | वह ठहराव सागर होता है | सागर प्यार से नदी को गले लगा लेता है और उससे कभी ना जुदा होने का वादा करता है | हजारों मील की दूरी तय करने के बाद यहीं नदी को उसका सच्चा प्यार मिलता है | नदी पूरी तरह उस सागर के प्यार में डूब जाती है, खो जाती है |
कोमल को भीं उसका सागर मिला था लेकिन वह डूबना ही नहीं चाहती थी | वह बस बहाव के संग-संग बहना चाहती थी | वह ठहरना जानती ही नहीं थी | वह सागर को छोड़कर आगे बढ़ गयी | अंततः वह नदी सूख गयी | बस उस नदी के निशान जिन्दा रह गए |    
        पर आप ? क्या आप भी अपने सागर को छोड़कर आगे बढ़ जायेंगे ? सोच समझकर खुद को जवाब   देना | क्योंकि प्यार के  मामले में आप स्वयं से झूठ  नहीं बोल सकते

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