वरमाला प्रेम की !!

ऐसे ही हर शाम की तरह वह भी एक आवारगी भरी शाम थी | हम लाल और काले रंग की चतुर्भुज डिजाईन वाली शर्ट पहने, ऊपर के २ बटन खोले, कॉलर खड़ी किये वहीँ गली की मोड़ पर इकलौती पान वाली दूकान के किनारे ४ दोस्तों के साथ सिगरेट फूँक रहे थे और ये मोहतरमा बगल से गुजरीं | आवारा दोस्त, यूँ किसी को कैसे जाने देते | एक ने जोर से कश भरी, धुंए का छल्ला बनाया और छोड़ दिया इनकी तरफ | धुआं ने तो इन्हें नहीं छुआ लेकिन इन्होने काट खाने वाली नजरों से हम सबकी तरफ देखा |  “बदतमीज इनके मीठे ओंठों से बस इतना ही निकला था | आहा, उसी “बदतमीज” के साथ हमारा ये बदतमीज दिल भी धक् से हो गया | उसी जलती सिगरेट की छोटी सी आग ने हमें शर्म से जला के ख़ाक कर दिया |
हम भी दौड़ कर पहुँच गये उनके पास और कान पकड़ लिए | कक्षा ८ की पढ़ाई अब काम आने वाली थी | सॉरी (अंग्रेजी में), जब तक आप माफ़ नहीं करेंगी हम आपका रास्ता नहीं छोड़ेंगे |
उन्होंने झील सी आँखों का सारा पानी हम पर बरसा दिया “ये क्या बदतमीजी है ?”
हम तो डूब ही गये उनकी आँखों में | बचने की कोई गुजाइश नहीं थी | लेकिन देखिये न, उन्होंने की बचा लिया !
रास्ता छोडिये मेरा !
हुक्म था दिल की मल्लिका का | हमने भी हुक्म की तामील की और हट गये |
 “यू गो“ अंग्रेजी में फुल कॉन्फिडेंस के साथ बोले थे हम |
कुछ ही दिन में वही मोहतरमा हमारे लिए क्या नहीं हो गयी | सब्ज्परी, उड़नपरी, सोनपरी, अप्सरा, गुलाबो, जलेबी सब वहीँ तो थी हमारी (कैसे बनीं इसकी कहानी किसी दिन शाम की चाय पर बताऊंगा) | हम भी तो उनके सोना, बाबू और बच्चा हो गये थे |
दिल फ़ुटबाल सा उछलने लगे थे, रात जगते हुए कटने लगी ,यूँ कहें की उनके साथ जिन्दगी १७६५ की कश्मीर जैसी हो गयी | एक जन्नत | सजी, संवरी, महकी. हर रंगों में रंगी ,बेहद खूबसूरत |
लेकिन दुनिया का सितम, किसी की नजर लग गयी हमारी दुनिया को | पिछले हफ्ते ही शादी हो गयी हमारी सोनपरी की | शादी के ठीक पहले वाली रात उन्होंने फ़ोन पर कहा “ आप शादी में नहीं आयेंगे तो मैं मंडप में नही जाउंगी | वरमाला मैं किसी के भी गले में डालूं लेकिन मैं अपनी नजरों के सामने तुम्हे देखना चाहती हूँ |
दिल दर्द से टूट रहा था ,पैरों में चलने की शक्ति नहीं थी लेकिन जाते कैसे नहीं | खड़े हुए उनके सामने ओंठों पर मुस्कान, और आँखों में आंसू लिए | उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो वरमाला दूल्हे को नहीं हमें ही पहना रहीं हो |

खैर, शादी किसी और से हो गयी तो क्या, अब भी वो हमारे पास ही आती हैं | हर शाम जब हम अकेले होते हैं वो चली आती हैं हमारे पास | हम भी ठहरे यू.पी. के पक्के आशिक | ७ फेरे किसी और के साथ ले लिए तो क्या उनकी रूह तो अब भी हमारी रूह में ही वास करती है | उन्हें देखते ही हम झट से भर लेते हैं अपनी बाहों में और चूम लेती हैं वो हमारे पेशाने | हम मना करते हैं तो खिलखिलाकर हंस पड़ती हैं | लेकिन यह सब अब बस यादों में होता है | पक्के आशिक हैं न | ऐसे नहीं छोड़ेंगे | प्यार किया है, जिन्दगी भर निभायेंगे |