अफ़सोस मत कर मेरे यारा !!!

कोई भीड़ में रोता है तो कोई तन्हाई में हँसता है मेरे यारा |
तू भी अब सोच मत, जिन्दगी जैसी है बस जी ले मेरे यारा |
माना वो बहुत खूबसूरत थे, तेरे अपने थे, मगर अब क्या हो ?
वो सपने दिन के थे और अब तो साँझ हो गयी है मेरे यारा |
यकीनन वो बादल फिर से आयेंगे और बरसेंगे झूम-झूम कर
जो बिखर गये पानी बनकर, उनका अफ़सोस मत कर मेरे यारा |
और ये यादों की साजिश तो सदियों से रचता आया है ये जहाँ,
भूलकर सब तू आगे बढ़ता जा, पीछे मुड़ कर न देख मेरे यारा |

जिन्दगी कट ही जाती है !!!

एक लम्हा, एक शब्द, एक गलती सब कुछ मिटा देती है | हमें आसमान से जमीन पर ला पटकती है | पल भर में हमारी खुशियों को गम में बदल देती है | हमें असहाय बना देती है | हमें पागल कर देती है | कब, कहाँ, कैसे कौन सा रिश्ता टूट जाए कुछ कहा नही जा सकता | देखा जाए तो रिश्ते शाखों पर झूलती पत्तियों की तरह होते हैं | शाखों पर पत्तियां नकलती हैं, बढती हैं, हवा के संग-संग मस्ती में झूमती हैं | लेकिन अचानक हवा का एक तेज झोंका उस पत्ती को उस शाखा से अलग कर ना जाने कहाँ ले जाता है | शाखा और पत्ती की ये दोस्ती, ये रिश्ता, ये प्यार पल भर में समाप्त हो जाता है | सब कुछ बिखर जाता है | कुछ रह जाता है तो वह है बिखरे हुए चुनिंदा अहसास, सकुचाई सी सहमी सी टुकड़ों में बंटी हुई कुछ यादें और उन यहाँ वहां फैले उन यादों के निशान | एक बार महसूस करिये उस अहसास को जब बेड के चादर की सिकुड़न जैसी की तैसी ही रहती है लेकिन उस बेड पर सोने वाला बहुत दूर जा चुका होता है | आप उस सिकुड़न को देखकर कभी मुस्कुराते हैं तो कभी रोते हैं | किसी की यादों को बटोरने की खातिर आप उस सिकुडन को भी सहेज लेना चाहते हैं | जब आप हर रोज उसी जगह पर जाकर घंटों बैठे रहते हैं जहाँ वह कभी आपके साथ बैठा करता था | दिल की बातें होती थीं, कुछ वादे होते थे, थोड़ी सी तकरार होती थी और फिर बड़ी देर तक हंसी की लहरें उठती रहती थीं | जब घर के कोने में पड़ी उसकी टूटी चप्पल ही आपके लिए सब कुछ हो जाती है | जब डायरी में रखे मुरझाये हुए फूल को आप सौ बार देखते हैं | आप उस गाने को सौ बार सुनते हैं जिसे आप कभी सुनना नही चाहते थे लेकिन उसने जबरदस्ती आपको सुनाया था |

सच में इन लम्हों में कितना प्यार है, कितना अपनापन हैं | यही कुछ लम्हे हैं जब हम जिन्दगी जीते हैं, बाकी समय तो बस हम जिन्दगी गुजारते हैं | तो क्यों न ऐसे ही कुछ और लम्हे जियें | किसी को अपना बनायें, उसके करीब जाएँ | इतना करीब कि उसकी धड़कनों की धक्-धक् भी हम आराम से सुन सकें | उसके साँसों की गर्मी को हम महसूस कर सकें | उसके बिना बोले उसकी मन की बात समझ जाएँ | कभी हम उससे रूठें तो कभी उसे मनाएं | और ऐसे ही उम्र गुजार दें | बाकी.............जैसे तैसे जिन्दगी तो सबकी कट ही जाती है |   

जिन्दा हो तो जिन्दगी है !!

जिन्दा हो तो जिन्दगी है, रफ़्तार की अब क्या कहें ?
कभी धीमी, कभी तेज तो कभी ठहर जाती है जिन्दगी | 
तनहा सफ़र,आँखें रुखी,ओंठ प्यासे, हर कदम में सूनापन 
हमसफ़र मिलता नहीं कि सुहानी हो जाती है जिन्दगी |
कोई हर वक़्त साथ रहा, और दोस्त भी न बन पाया  
किसी को एक लम्हे में अपना बना जाती है जिन्दगी |
कैसी माया है ये कि एक पल में कोई जी लेता है सदियाँ
अफ़सोस, किसी के लिए वहीँ छोटी पड़ जाती है जिन्दगी |

हर जर्रे में हमारी दास्ताँ हो !!!

मदहोशी का आलम हो, न सुबह, न शाम हो
तू सामने रहे नजर के, न भूख हो, न प्यास हो |
हर गुफ्तगू तेरी हो, पर एक चाहत मेरी हो
मैं सुन लूँ तुझे, तू आवाज हो चाहे बे-आवाज हो |
तेरे आंसू मेरे बने, मेरी हंसी तुझपे मरे
ख़ुशी तेरी मुट्ठी में हो, मेरा वक़्त तेरा गुलाम हो |
मुझे कोई अच्छा न लगे, कभी कुछ बुरा न लगे
ऐतबार हो तो तुझपर हो, रुसवाई हो तो तुझसे हो |
लहर चींखें देखकर मुझे, साहिल मुझसे तेरा नाम पूछे 
हर तरफ हमारा शोर हो, हर जर्रे में हमारी दास्ताँ हो |