एक लम्हा, एक शब्द, एक गलती सब कुछ मिटा देती है
| हमें आसमान से जमीन पर ला पटकती है | पल भर में हमारी खुशियों को गम में बदल
देती है | हमें असहाय बना देती है | हमें पागल कर देती है | कब, कहाँ, कैसे कौन सा
रिश्ता टूट जाए कुछ कहा नही जा सकता | देखा जाए तो रिश्ते शाखों पर झूलती पत्तियों
की तरह होते हैं | शाखों पर पत्तियां नकलती हैं, बढती हैं, हवा के संग-संग मस्ती
में झूमती हैं | लेकिन अचानक हवा का एक तेज झोंका उस पत्ती को उस शाखा से अलग कर
ना जाने कहाँ ले जाता है | शाखा और पत्ती की ये दोस्ती, ये रिश्ता, ये प्यार पल भर
में समाप्त हो जाता है | सब कुछ बिखर जाता है | कुछ रह जाता है तो वह है बिखरे हुए
चुनिंदा अहसास, सकुचाई सी सहमी सी टुकड़ों में बंटी हुई कुछ यादें और उन यहाँ वहां
फैले उन यादों के निशान | एक बार महसूस करिये उस अहसास को जब बेड के चादर की
सिकुड़न जैसी की तैसी ही रहती है लेकिन उस बेड पर सोने वाला बहुत दूर जा चुका होता
है | आप उस सिकुड़न को देखकर कभी मुस्कुराते हैं तो कभी रोते हैं | किसी की यादों
को बटोरने की खातिर आप उस सिकुडन को भी सहेज लेना चाहते हैं | जब आप हर रोज उसी
जगह पर जाकर घंटों बैठे रहते हैं जहाँ वह कभी आपके साथ बैठा करता था | दिल की
बातें होती थीं, कुछ वादे होते थे, थोड़ी सी तकरार होती थी और फिर बड़ी देर तक हंसी
की लहरें उठती रहती थीं | जब घर के कोने में पड़ी उसकी टूटी चप्पल ही आपके लिए सब
कुछ हो जाती है | जब डायरी में रखे मुरझाये हुए फूल को आप सौ बार देखते हैं | आप
उस गाने को सौ बार सुनते हैं जिसे आप कभी सुनना नही चाहते थे लेकिन उसने जबरदस्ती
आपको सुनाया था |
सच में इन लम्हों में कितना प्यार है, कितना अपनापन
हैं | यही कुछ लम्हे हैं जब हम जिन्दगी जीते हैं, बाकी समय तो बस हम जिन्दगी
गुजारते हैं | तो क्यों न ऐसे ही कुछ और लम्हे जियें | किसी को अपना बनायें, उसके
करीब जाएँ | इतना करीब कि उसकी धड़कनों की धक्-धक् भी हम आराम से सुन सकें | उसके साँसों
की गर्मी को हम महसूस कर सकें | उसके बिना बोले उसकी मन की बात समझ जाएँ | कभी हम उससे
रूठें तो कभी उसे मनाएं | और ऐसे ही उम्र गुजार दें | बाकी.............जैसे तैसे जिन्दगी
तो सबकी कट ही जाती है |
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