चले जाओ, तुम्हे जो जाना है !!!

चले जाओ, तुम्हे जो जाना है
 यूँ रुक कर खुद पर सितम न करो 
 सुर्ख आँखें मेरी सुर्ख ही रहेंगी 
की तुम्हारे जाने के गम में 
 मेरे रुखसार से कोई बूँद न गुजरेगी
 यूँ ही कभी याद जो आई तुम्हारी
 फकत इतना सा होगा की
 दिल के किसी कोने में
 कई आईने एक साथ टूट जायेंगे 
 मगर हाँ, उस आईने में शक्ल तुम्हारी ही होगी !
 तुम, तुम्हे तो गुल-ए-राहें मिलेंगी
 हयात की हर शाम शबे-महताब मिलेंगी
 कफ़स तो नसीब में है हम जैसों के
 तुम्हे तो महलों की दरें दीवारें मिलेंगी
 रानाईयाँ बरसेंगी तुम पर इश्क़ की 
 खिजां में भी तुम्हे बहारें मिलेंगी 
मेरी सुबहें तो सुकूत-ए-मुसलसल होंगी
 हर सहर तुम्हे मीठी सदायें मिलेंगी 
 मगर जो अचानक कहीं देख लोगी तुम 
किसी की सुर्ख आँखों में मरते हुए खवाब 
कुछ टूटे फूटे बेमतलब अल्फाज 
 जो तुम्हारे कानों में गूँज जाएंगे
 मेरी यादें अनजाने ही खटखटा जाएँगी 
 तुम्हारे बंद दिल का कोई हिस्सा 
मैं याद आऊंगा तुम्हे , इतना की 
रुखसार पर तुम्हारे मोती पिघलने लगेंगे
 तुम समेटना चाहोगी उन टूटे अल्फाजों को
 हाथों में भरना चाहोगी, मगर कहाँ
 वह तो तुम्हारे हाथों से फिसल जायेंगे 
मिल जायेंगे तुम्हारी ही मिट्टी में 
 तुम वापस जो आना भी चाहोगी 
तो राहों से तुम्हारे ही निशान मिट चुके होंगे 
 तरस जाओगी मेरे कफ़स की खातिर 
 इतना की खुद से हार जाओगी तुम 
 मगर हम, हम तब भी नही मिलेंगे तुम्हे
 हम तो तुमसे पहले ही मिट चुके होंगे !!! 


 रुखसार-गाल 
 हयात-जिंदगी 
कफ़स- कैदखाना, पिंजरा 
रानाईयां- स्नेह
 खिजां - पतझड़,
 पतन सुकूत-ए-मुसलसल--लगातार ख़ामोशी का बने रहना

इक रात जो बसर हो जाए !!!

जिन्दगी में नौबहार की मुसलसल सहर हो जाए 
तुम्हारी बाहों में मेरी इक रात जो बसर हो जाए !
 ये रुखसार, ये पेशाने, ये साहिर आँखें तुम्हारी
जो निकलें नकाब से बाहर तो ग़ज़ल हो जाए !
नाओनोश भी, मदहोश भी, अहसास जफ़र का हो
तुम्हारी इनायत का जिस पर भी असर हो जाए !
कभी चाँद को जो देखो तुम आँखों में भरकर
रात का जैसे किसी सब्जपरी से मिलन हो जाये !
जिस रहगुजर से तुम गुजर जाओ, राहें कदम चूमे
अफ़सुर्दा उजाड़ सफ़र भी जाज़िब बदन हो जाए !!
अफ़सुर्दा – उदास
नाओनोश-  दावत करना
जफ़र- जीत 
साहिर – जादूगरी

जाज़िब – आकर्षक 

बेशक़ीमती गहने हों जैसे !!!


शर्म हया लाज घूंघट मुस्कराहट उसने पहने हैं कुछ ऐसे 
बड़ी दुर्लभता से मिलने वाले बेशक़ीमती गहने हों जैसे !!
जलती तपती उड़ती रेतों को वो अंजलि में यूँ भरती है 
मेले में खोकर फिर मिलने वाले उसके बच्चे हों जैसे !!
थमते बहते गिरते अश्कों को चूमती है जो नजरों से ही 
निकल कैद उन्मुक्त गगन में उड़ने वाले सपने हों जैसे !!
रूकती चलती थकती आगे बढ़ते ही जाना है उसको 
सारी दुनिया के गम निपट अकेले ही सहने हों जैसे !!!