हाँ, लौटना कठिन होता है !!!


दिन ,माह, बरस बीत गए 
तुम लौट कर नहीं आये 
हाँ, लौटना कठिन होता है !
कितने दिनों से उदास चांदनी
खिड़की से अंदर झांकती है 
तुम्हे खोजती है, नहीं पाती है 
चुपचाप लौट जाती है 
हाँ, लौटना कठिन होता है !!
कुछ ख्वाब दिल में उतरते हैं
हर शाम बस यूँ ही अकस्मात्
तुम्हारे साथ जीने की तमन्ना लिये
तुम्हे ढूंढते हैं हर कोने में 
मगर निराश होना पड़ता है उन्हें
घुप्प अँधेरे में चुपचाप लौट जाते हैं वे
हाँ , लौटना कठिन होता है !!!
कभी कुछ कदम बढ़ाता हूँ मैं भी 
तुम्हारे ही पद-चिन्हों पर 
तुम तक पहुँचने की चाह लिए 
मगर ये चिन्ह साथ कहाँ देते हैं 
दसों दिशाओं ने मिटा दिए हैं तुम्हारे निशां
मुझे विवश करती है ये प्रकृति लौट जाने को 
और एक दिन मैं लौट आता हूँ 
हाँ, लौटना कठिन होता है !!!

बेइंतहा मोहब्बत कीजिए !!!

मोहब्बत कीजिए ! बेइंतहा मोहब्बत कीजिए ! खुले आसमान में उड़ते उन्मुक्त पंछियों की तरह आजाद मोहब्बत कीजिए ! साहिल से बार बार टकराती लहरों की तरह जोरदार मोहब्बत कीजिए ! खिड़कियों को सहलाती, उनकी पीठ थपथपाती नर्म हवा की तरह पवित्र मोहब्बत कीजिए ! सुर्ख पत्तों को नम करती, उनसे लिपट जाने वाली,लिपट कर सरक जाने वाली ओस की तरह अंतिम सांस तक मोहब्बत कीजिए ! अँधेरे की बाहों में पसरी सुनसान सड़क पर निडरता से चलने वाले किसी राही की तरह बेधड़क मोहब्बत कीजिए ! कुदरत की कोख में समाये चाँद, सितारे, आसमान, बादल, नदी ,झरने, सागर, पहाड़, पेड़ पौधे, जंगल, मिट्टी के आपस में जुड़ी कहानी की तरह अटूट मोहब्बत कीजिए ! बेपनाह मोहब्बत कीजिए ! आखिरकार इंसानों को भगवान से प्राप्त सबसे खूबसूरत नेमत है "मोहब्बत"
हाँ, इस मोहब्बत में इतना ख्याल जरूर रखियेगा, कि अगर किसी दिन आपकी मोहब्बत आपसे दूर चली जाए, कारण कुछ भी रहा हो, लेकिन आपकी मोहब्बत अब आपकी न रह जाए, आपको छोड़कर चली जाए तो आपके अंतर्मन में उसके प्रति,उससे भी ज्यादा अपने प्रति, या समस्त संसार के प्रति नफरत की भावना न पैदा दो !
अकसर मोहब्बत को उदासी, गहरी पीड़ा, फिर नफरतों में तब्दील होते देखा गया है ! जैसे मजहबों की आग ने पृथ्वी के भौगोलिक पृष्ठभूमि के टुकड़े टुकड़े कर डाले, नफरत हमारे दिलों को अनंत टुकड़ों में बाँट देती है, छलनी कर देती हैं ! नफरत की आग में जलती हमारी निगाहों की परिधि सिमट जाती है और उसमें सिर्फ नकारात्मक विचारों के ज्वार-भाटे आते हैं ! नफरत के काले अँधेरे हमारे हमारी मोहब्बत को ही नहीं हमारी भावनाओं, हमारी इच्छाओं, हमारे ख्वाबों तक तो काला कर देते हैं, उन्हें दूषित कर देते हैं ! वह नफरत भले ही हम खुद से ही क्यों न करें !
नफरत से बेहतर है उदासीनता का भाव ! जहाँ हम यह मान लेते हैं कि हमारी मोहब्बत का अब कोई अस्तित्व ही नही है, हमारा कोई अस्तित्व नहीं है, मोहब्बत के जो खुशगवार पल हमने जिए वो एक बेहतरीन सपना था !
सपने टूट जाते हैं, बिखर जाते हैं और गुम हो जाते हैं ऐसे जैसे हम कभी उनसे मिले ही नही ! अगर आप यह कर सकें तो मोहब्बत कीजिए , बेपनाह मोहब्बत कीजिए !

पुरसुकून सांस लेता है सांस छोड़ने वाला !!!

फरिस्ता है इश्क में खुद को मिटाने वाला 
अक्सर हँसता है आसुंओं में नहाने वाला !

मैं कब से मुड़ मुड़ के तनहा राहे देखता हूँ
लौट कर कब आता है छोड़कर जाने वाला !

पल भर में ही वो नजरों से गायब हो गया 
सितारा जिसे था मैं प्यार से चूमने वाला !

हमेशा जान हथेली पर लेकर चलती हैं वे
मैं कौन होता हूँ उन्हें कुछ बोलने वाला !

मौत कहाँ रोक पायी है जीने वालों को 
पुरसुकून सांस लेता है सांस छोड़ने वाला !

कुछ रिश्ते साथ छोड़ देते हैं !!!


मुश्किलें बहुत बढ़ जाती हैं
वक़्त बेहद नाजुक हो जाता है 
जिम्मेदारियां थक जाती हैं
आहों भरी सदायें निकलती हैं 
नम आँखें भी बंजर हो जाती हैं 
रातें दर्द से फफक कर रो पड़ती हैं 
पल दर्द की पनाहों में जा बैठता है 
खिड़कियां, दरवाजे, राहें खो जाती हैं 
दो रूहों की दिशाएं बदल जाती हैं 
मजबूरन दिल इजाजत दे देता है 
उदासियों से खुद को भर लेता है 
और कुछ रिश्ते , खूबसूरत रिश्ते
यूँ ही चुपचाप साथ छोड़ देते हैं !!

मोहब्बत की खुशबू !!!


ये जो तुम इधर उधर पलट मुझे देखते हो 
किसी किताब के कवर पेज की तरह
और कैद कर देते हो किसी अलमारी में
न जाने क्या सोच समझ कर, बिना पढ़े
जैसे कोई नीरस, बेकार कचरे का ढेर 
 मगर जो हो फुरसत तो निकालना मुझे
बंद अलमारी से और रखना अपनी हथेली पर 
और खोलना मुझे वर्क दर वर्क, 
उधेड़ कर देखना मुझे पर्त दर पर्त 
 तुम पाओगी एक खूबसूरत दिल का टुकड़ा 
कोमल अहसासों से भरी एक रूह 
नर्म, नेकदिल, मित्र जैसा एक इंसान 
 तुम पाओगी अपनी हथेलियाँ महकती हुई 
तबस्सुम की सादगी से, मोहब्बत की खुशबू से !

तुम जो छोड़ जाओगी घर को..!!!


न चूड़ियों की खनखन होगी
न पायलों की छनछन होगी 
तुम जो छोड़ जाओगी घर को 
न बालियों की चमचम होगी !
दरवाजा चरमराकर रह जायेगा 
दरो-दीवारों की रंगत उतर जायेगी
रात चाँद खिड़की पर क्यों आएगा 
रात भर घर में रौशनी न होगी 
न सहर में फूलों पर शबनम होगी !
       तुम जो छोड़ जाओगी घर को.......