एक उदास रात !!!

11 बजने को हो गये हैं | रात जवां हो गयी है | फलक पर सितारे नाच रहे हैं, चाँद मुस्कुरा रहा है | चांदनी लोगों के दिलों में मुहब्बत के तराने गा रही है | कहीं ख्वाब पिघल रहे हैं, आरजुएं सिमट रहीं हैं, सदायें दम तोड़ रही हैं, खामोशियाँ बातें कर रही हैं, कहीं जिस्म नजदीक आ रहे हैं, रूहें एक हो रही हैं, धरती मुहब्बत के इस अफ़साने में डूब गयी है और मैं......!
अकेला हूँ मैं, निपट अकेला | इतना कि खुद से बातें करते हुए भी डर लगता है मुझे | दरवाजे पर ही बैठा हूँ तुम्हारी आस में | ये गहराई हुई रात, ये चाँद सितारे, ये फैली चांदनी, ये हवाएं, फिजायें.........क्या करूं मैं इनका | तुम बिन सब बेकार है, बेहया, बेशर्म लगते हैं मुझे | मेरे न चाहने पर भी चले ही आते हैं | हाँ, मेरे चाहने से होता भी क्या है ? मैंने कभी नहीं चाहा की कोई मेरी जिन्दगी में आये लेकिन तुम आ गयी | मैंने कभी नहीं चाहा था मुहब्बत करना लेकिन हो गयी | मैंने कभी नहीं चाहा था की तुम जाओ लेकिन तुम चली गयी | मैं चाहता हूँ तुम वापस आ जाओ लेकिन......|
खैर, मैं सच में बहुत उदास हूँ यार | जैसे किसी गरीब बच्चे का सबसे महंगा खिलौना टूट गया हो | अब हिम्मत भी नहीं रही तुमसे गुस्सा होने की, तुमसे शिकायत करने की, या फिर से तुमसे तुम्हे वापस मांगने की | शायद मैं मोहब्बत के उस मुकाम पर पहुँच गया हूँ जहाँ गिले-शिकवे, वफाई, बेवफ़ाई जैसे लफ्ज मर ही जाते हैं बस खामोश सा दर्द ही रह जाता है जो हर पर मेरे जिन्दा होने का अहसास कराता रहता है |
जानता हूँ | सितारे नाच गाकर चले जायेंगे | चाँद थक हार कर सो जायेगा | सहर में बरसी शबनम में सब मदहोशी खोने लगेंगे | पंछी चहचहाने लगेंगे, जानवर नदी की ओर जाने लगेंगे, कलियाँ फूल बनने लगेंगी, इन्सान बिस्तर पर करवट लेने लगेगा और मैं.........| मैं तब भी ऐसे ही उदास बैठा रहूँगा, तुम्हारी आस में ..........!

सफ़र में कभी कोई साथ आया ही नहीं !!!

नज़र नज़र में उसने फंसाया ही नहीं
उसकी बातों में कभी मैं आया ही नही !
जुस्तजू तो थी आरती उतारूँगा मैं भी
 चाँद मेरे घर तो कभी आया ही नही !
रौंदा है इक निकहत-ए ख्याल ने मुझे
साथ अपने अब अपना साया ही नहीं !
शरर उठी थी कहीं दस्त-ओ-दरिया में
खौफज़दा हो नौबहार आया ही नही ! मैं
 रूठूँ तो किससे रूठूँ, कौन मेरा है
सफ़र में कभी कोई साथ आया ही नहीं !