नज़र नज़र में उसने
फंसाया ही नहीं
उसकी बातों में कभी
मैं आया ही नही !
जुस्तजू तो थी आरती
उतारूँगा मैं भी
चाँद
मेरे घर तो कभी आया ही नही !
रौंदा है इक निकहत-ए
ख्याल ने मुझे
साथ अपने अब अपना
साया ही नहीं !
शरर उठी थी कहीं
दस्त-ओ-दरिया में
खौफज़दा हो नौबहार
आया ही नही ! मैं
रूठूँ तो किससे रूठूँ, कौन मेरा है
सफ़र में कभी कोई साथ
आया ही नहीं !
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