ये जो तुम इधर उधर पलट मुझे देखते हो
किसी किताब के कवर पेज की तरह
और कैद कर देते हो किसी अलमारी में
न जाने क्या सोच समझ कर, बिना पढ़े
जैसे कोई नीरस, बेकार कचरे का ढेर
मगर जो हो फुरसत तो निकालना मुझे
बंद अलमारी से और रखना अपनी हथेली पर
और खोलना मुझे वर्क दर वर्क,
उधेड़ कर देखना मुझे पर्त दर पर्त
तुम पाओगी एक खूबसूरत दिल का टुकड़ा
कोमल अहसासों से भरी एक रूह
नर्म, नेकदिल, मित्र जैसा एक इंसान
तुम पाओगी अपनी हथेलियाँ महकती हुई
तबस्सुम की सादगी से, मोहब्बत की खुशबू से !
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