किसी कोने में रो रहा
है वो, जो सभी को हंसाने चला था |
अब कौन याद करता है
उसे, जो खुद को मिटाने चला था |
ये दुनिया कितनी जालिम
है जो उसे भी चोर कह दिया
वह तो बस वक्त से दो
लम्हा खुद के लिए चुराने चला था |
कभी दर्शन तो न हुए,
लेकिन मंदिर के चौखट पर मर गया वो
गरीब, जो आज अपने
भगवान को खाली हाथ पूजने चला था |
और देख लो हार कर वो
भी वापस लौट आया है “प्रकाश”
परिंदा जो कल बादलों
को चीर आसमान को छूने चला था |
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