थक सी गयी है अब वह ,
कच्चे रिश्ते निभाते- निभाते
बहुत परेशान हो गयी है वह
इन रिश्तों के बोझ तले दबकर
नही चाहती है अब वह
और किसी का साथ
नही चाहती है अब वह
पकड़ कर चलने को किसी का हाथ
वह आजाद उड़ना चाहती है
अपने पंखों के सहारे
इन मदमस्त हवाओं के साथ,
नीले नीले बादलों के बीच,
लेकिन जैसे ही वह अपने कदम आगे बढाती है
उसे याद आ जाता है
वो सुन्दर हँसता हुआ चेहरा
वो उसके बाहों की नरमी
उसके साँसों की गर्मी
जिनमे वह अक्सर ही डूब जाया करती थी |
इन्ही यादों के संग जन्म लेती है एक तीव्र इच्छा
कि जाने से पहले देख लूँ उसे बस एक बार
बस "अंतिम बार" इसके बाद कभी नहीं
और उसे देखने के बाद वह कहीं जा नही पाती
उसकी यही चाहत उसे रोक लेती है
और उसका "अंतिम बार" कभी नही आता |
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