जुगनुओं सी लगती है जिन्दगी
जब साथ होती हो तुम,
घोर अँधेरे में चमकती, दमकती,
मुस्कुराती जिन्दगी |
एक दर्द का साया उठता है
न जाने क्यों बस मेरी तरफ बढ़ता है,
डर जाता हूँ, अंदर से हिल जाता हूँ ,
मेरे लम्हों में सूनापन बढ़ने लगता है
कि हौले से आती हो तुम,
तुम्हारी गर्म छुवन से मेरे ठंडे हाथ
नर्म सा पड़ने लगते हैं
तुम्हे पास पाकर सारे दर्द जाने कहाँ चले
जाते हैं
कुछ रह जाता है तो वह,
भोर के फूल सी महकती, चहकती
झूमती जिन्दगी |
हर तरफ हर जगह एक भीड़ सी है
और हर इंसान की तरह मै भी यहाँ तनहा,
कि गुजरती हो तुम मेरे करीब से
हमराह सी नजरें गिरती हैं मुझपर
तन्हापन के बादल छंटने लगते हैं
और रह जाती है तो बस
मुलायम बूंदों सी बरसती,भीगती
मचलती जिन्दगी |
No comments:
Post a Comment