तुम्हे तो खबर भी नही होगी
कहीं तुम्हारी नजरों से दूर
तुम्हारी चाहत में बिछी होंगी
किसी की पलकें
न जाने कब से......
कोई बेक़रार होगा
तुम्हारी आँखों के आईने में
खुद को झाँकने को
आंखें तुम्हारी
जो कभी झील सी ठहरी
तो कभी बर्फ सी सफ़ेद, सुंदर
डूबी रहती हैं किसी की चाहत में....
कोई छूना चाहता होगा
ओंठ तुम्हारे
जो गुलाब जैसे मुरझाते नही हैं
वो तो खिले रहते हैं हमेशा
जैसे स्वर्ग में खिले
किसी फूल की पंखुड़ियां ......
कोई सुनना चाहता होगा
तुम्हारी आवाज,
जिसमे मिसरी सी घुली है
जैसे सुबह के वक़्त
किसी सुनहरी कोयल की कूंक .....
वह बसना चाहता होगा
तुम्हारे मन में
तुम्हारा मन
जो साफ़ है बहते पानी की तरह
स्वच्छ है पिघली बर्फ के जैसे
और विशाल इतना जैसे
हिमालय की कोई वादी !!!
झाँक कर देखो कभी
उसे अपने अंदर
और खुद को मिटा दो
इस कदर
उसके प्यार में
की दोनों की
चाहत मिलकर
एक हो जाये !!!
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