मैं कह नही पाया तुमसे
लेकिन कल देखा था मैंने
तुम्हारी आँखों में
छोटे छोटे छिटके हुए उदास
तनहा बादल !
बादल जो बरसना चाहते थे
किसी के कन्धों पर
या शायद महसूस करना चाहते थे
किसी मर्द के सख्त हाथों को
लेकिन अफ़सोस..... वो नही बरस पाये !
बादल, वो बरसते भी तो किस पर
कौन समझता उन्हें,
वो जो आज तक खुद को ही नही समझ पाये
या वो जो आँखों में नहीं
बस बदन को निहारते रहते हैं !
या शायद वो डर रहे हैं
कि कहीं उन्हें यूँ बरसता देख कोई हंस ना दे !!
लेकिन कल देखा था मैंने
तुम्हारी आँखों में
छोटे छोटे छिटके हुए उदास
तनहा बादल !
बादल जो बरसना चाहते थे
किसी के कन्धों पर
या शायद महसूस करना चाहते थे
किसी मर्द के सख्त हाथों को
लेकिन अफ़सोस..... वो नही बरस पाये !
बादल, वो बरसते भी तो किस पर
कौन समझता उन्हें,
वो जो आज तक खुद को ही नही समझ पाये
या वो जो आँखों में नहीं
बस बदन को निहारते रहते हैं !
या शायद वो डर रहे हैं
कि कहीं उन्हें यूँ बरसता देख कोई हंस ना दे !!
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