इन्तजार !

हर लम्हा उसका ही इन्तजार
मुझे तड़पाता रहता है |
निगाहें कभी इधर तो कभी उधर
उसकी ही तलाश करती है |
रात होते ही मेरे दिल में
उसका साया बनने लगता है
ऐसा लगता है जैसे वह
मुस्कुराते हुए मेरे पास आती है |
और मुझसे पूछती है
तुम्हे मेरा ही इन्तजार था ना ?
 मै उससे कुछ कह नही पाता
ऐसा लगता है जैसे
मेरे ओंठ सिल गये हों
मेरी रूह बर्फ सी जम गयी हो
मै एक दीवाने की तरह
बस उसे एकटक देखता रहता हूँ
और वह शरमा जाती है |
शरमाते हुए वह पूछती है
क्या मै इतनी खूबसूरत हूँ ?
मै आँख बंद कर लेता हूँ
और उससे कहता हूँ “ हाँ “
तुम बहुत खूबसूरत हो |
तुम्हारी आँखे में डूबने को जी करता है |
तुम्हारी बाहों में झूमने को जी करता है |
तुम्हारे ओंठ चूमने को जी करता है |
यह कहकर मै हौले हौले
अपनी आँखें खोलता हूँ
और वह मुझे नही दिखाई देती |
कहीं भी नही |
एक बार फिर ये निगाहें
उसे तलाश करने लगती है |
लेकिन वह कहीं नही दिखती
कहीं भी नही |

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