रात के आते ही मेरे मन में
अंकुरित हुआ एक ख्वाब
चाँद की रोशनी में नहाकर
ढलती रात के संग संग
वह जवां होने लगा |
ठंडी हवाओं ने उसे बहकाया
लेकिन वो बहका नही |
जब चाँद बादलों में छुपा
तो अंधेरों ने उसे रोका
लेकिन वो रुका नही |
रात के वीराने में
गहरी खामोशियों ने उसे
डराया
लेकिन वो डरा नही |
रात के तीसरे पहर
कुछ आवाजों ने उसे बुलाया
लेकिन उसने सुना नही
अपने लक्ष्य को देखता
वह बस चलता रहा |
अंततः सुबह जाग गयी
रात कहीं उजालों में खो गयी
खामोशियाँ आवाज लेने लगीं
हवाएं शीतल हो गयी
आखिरकार नर्म किरणों ने उसे
छुआ
और वह ख्वाब बड़ा हो गया |
No comments:
Post a Comment