काश अपनी भी ऐसी ही इक रात आती,
मै देखता आसमां और बरसात आती ।
ढूंढ़ता फिरता चाँद महबूबा को अपनी
चांदनी मुझसे मिलने मेरे पास आती ।
रात भर उसके पहलू में जागता मै रहता
और वो मेरी नींदों में हर-बार आती ।
उसके ओठों पर बस मेरा नाम रहता
मेरी बातों में उसकी ही हर बात आती ।
टूटे पत्तो की तरह जमीं को छूते हुए
काश मुझको छूने मेरी दिलदार आती ।
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