कुछ रंग के , कुछ रूप के,
मगर यहाँ दीवाने हैं सभी
कुछ जलते, कुछ बुझे हुए मगर,
यहाँ परवाने है सभी |
ये इश्क भी कभी दरिया है तो
कभी सागर है जिसे
कुछ डूबकर, कुछ तैर कर मगर,
पार करते है सभी |
खामोशियाँ है कहीं कहीं ,
कहीं बेहिसाब सा शोर है
लब्ज निकले कभी ना निकले
मगर, यहाँ कहते है सभी |
ये धूप, ये रास्ता कि छावं
कहीं मयस्सर नही
कुछ ओंठ सूखे, कुछ गीले मगर,
यहाँ प्यासे है सभी |
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