क्या कहती हो,तुम आओगी न !!!


क्या कहती हो,, तुम आओगी न !!!
वक्त जब मुझसे किसी मोड़ पर रूठ जाए 
बेस्वाद सा दिन जाए, अकेली रात आये
उस पर भी यादों की गिरफ्त हो इतनी 
कि तन्हाई दर्द, मोहब्बत जुर्म हो जाये 
तुम कहीं छोड़ कर गुरूर अपना, 
टिमटिमाते तारों के बीच से उतर आना 
बिखरी चांदनी में रात को गवाह बना
मेरा हाथ अपने हाथ में तुम थाम लेना !!!
बीतती जिंदगी का जब वो वक़्त भी आये 
मेरी बूढी आँखें जो पहचान न पाएं तुम्हे 
मेरे कांपते लफ्ज भी पुकार न पाएं तुम्हे
मैं तड़पूँ किसी की निगाहों में झाँकने को 
मैं रोऊँ कोई पहचानी आवाजें सुनने को
पायल की छन छन करते तुम आना तब 
रख कर ऊँगली ओंठों पर अपनी 
बस एक बार अपने अंदाज में मुस्कुरा देना !!!
कभी मेरी जिंदगी का वो लम्हा भी आये 
उगते सूरज के साथ मेरी शाम ढलने लगे
मेरी निगाहों में संसार धुंधला हो जाए 
धड़कने मेरी अचानक धड़कना छोड़ने लगें 
मेरे कांपते हाथ टटोलें अपने आस पास 
कोई भी मेरे हाथों को सहारा न दे पाये 
मैं चीखूं चिल्लाऊं कुछ नामों को 
मगर आवाज गले में ही फंसकर रह जाए 
जब आँखों दिल से सारी आशाएं मिट जाएँ 
अंजुलि में ज्योति लेकर दूर कहीं से तुम आना
अपनी कोमल बाहों में सिर रख कर मेरा 
मेरे जाते जाते मेरी रूह को तुम छू लेना !!!
तुम आओगी न !!!

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