छम-छम करती आओं न !!!

एक बेगाने से मौसम में
 एक अनजाने से मिलने
छम -छम  आवाज करती आई  थी  तुम
रिमझिम-रिमझिम बरसात संग लायी थी तुम
तुम्हे देख  जाने कितने ख्वाब जागे थे मन में
न जाने कितने अरमान उमड़े थे मुझमे
पैरों से पानी को उछालती 
अपने भीगते आँचल को हवा में लहरा
चेहरे को ऊपर उठा आँखे बंदकर
अपने ओठो पर ठहरी बूंदों को सहलाती
मेरा नाम अपने ओठों पर लायी थी तुम
कुछ शरारती बूँदें तुम्हारे गालों को चूमती
तुम्हारे कपड़ो को भेदती
भिगो रही थी तुम्हारे तन-मन  को
तभी हवा का सर्द झोंका आया था
तुम सर से पाँव तक कांपती
छप -छप  करती मेरी तरफ भागती
मुझमे लिपट गयी थी तुम
और फिर  घंटों बारिश में
एक ही बूँद  से
भीगे  थे हम दोनों
वो बारिश फिर  आई है
तुम भी छम-छम करती आओं न
फिर से हवा का झोंका आये
 फिर से तुम लिपटो मुझसे
और एक ही बूँद से भीगें  हम दोनों ।




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