चांदनी को घर से बाहर देता हूँ !!!

 चांदनी को घर से बाहर  देता हूँ ।
जब तुझे आते हुए देख लेता हूँ ।
बहुत लम्बी हो जाती है मेरी वह रात 
जब चाँद के साए में तुझे देख लेता हूँ ।
मन करता है यू ही बरसता रहे ये बादल 
जब वर्षा में तुझे भीगते हुए देख लेता हूँ।
अजीब सी कसमकस  होने लगती है मुझमे 
जब बहुत करीब से कभी तुझे देख लेता हूँ ।
 वो शाम मेरी बेरंगीन शाम शाम बन जाती है 
जिस शाम तुझे किसी और के साथ देख लेता हूँ ।


No comments:

Post a Comment