चले जाओ, तुम्हे जो जाना है
यूँ रुक कर खुद पर सितम न करो
सुर्ख आँखें मेरी सुर्ख ही रहेंगी
की तुम्हारे जाने के गम में
मेरे रुखसार से कोई बूँद न गुजरेगी
यूँ ही कभी याद जो आई तुम्हारी
फकत इतना सा होगा की
दिल के किसी कोने में
कई आईने एक साथ टूट जायेंगे
मगर हाँ, उस आईने में शक्ल तुम्हारी ही होगी !
तुम, तुम्हे तो गुल-ए-राहें मिलेंगी
हयात की हर शाम शबे-महताब मिलेंगी
कफ़स तो नसीब में है हम जैसों के
तुम्हे तो महलों की दरें दीवारें मिलेंगी
रानाईयाँ बरसेंगी तुम पर इश्क़ की
खिजां में भी तुम्हे बहारें मिलेंगी
मेरी सुबहें तो सुकूत-ए-मुसलसल होंगी
हर सहर तुम्हे मीठी सदायें मिलेंगी
मगर जो अचानक कहीं देख लोगी तुम
किसी की सुर्ख आँखों में मरते हुए खवाब
कुछ टूटे फूटे बेमतलब अल्फाज
जो तुम्हारे कानों में गूँज जाएंगे
मेरी यादें अनजाने ही खटखटा जाएँगी
तुम्हारे बंद दिल का कोई हिस्सा
मैं याद आऊंगा तुम्हे , इतना की
रुखसार पर तुम्हारे मोती पिघलने लगेंगे
तुम समेटना चाहोगी उन टूटे अल्फाजों को
हाथों में भरना चाहोगी, मगर कहाँ
वह तो तुम्हारे हाथों से फिसल जायेंगे
मिल जायेंगे तुम्हारी ही मिट्टी में
तुम वापस जो आना भी चाहोगी
तो
राहों से तुम्हारे ही निशान मिट चुके होंगे
तरस जाओगी मेरे कफ़स की खातिर
इतना की खुद से हार जाओगी तुम
मगर हम, हम तब भी नही मिलेंगे तुम्हे
हम तो तुमसे पहले ही मिट चुके होंगे !!!
रुखसार-गाल
हयात-जिंदगी
कफ़स- कैदखाना, पिंजरा
रानाईयां- स्नेह
खिजां - पतझड़,
पतन
सुकूत-ए-मुसलसल--लगातार ख़ामोशी का बने रहना