मैं तो हर शबे-महताब चलूँ !!!

 पागल-पागल कहते फिरते मैं फिर भी उनकी राह चलूं |
हो दश्त-ए गम कितना भी मैं हर रस्ता बे-हिरास चलूं |
इस मुकम्मल जहान में महबूब न कोई आशना मेरा
अहद-ए-शबाब लेकर मैं फिर भी उल्फत-ए-राह चलूं |
गुजरता हुआ वक़्त और फ़िगार सा ठहरता हुआ मैं  
हंसीं आखों में लिए ख्वाब तेरा तेरे तलबगार चलूँ |
यहाँ दिन में उजाले नहीं होते ,ये मायावी दुनिया है
जलता बुझता जुगनूँ सा मैं तो हर शबे-महताब चलूँ |
अहद-ए-शबाब=जवानी का वक्त
बे –हिरास= बिना डर के
फ़िगार= चिन्तित 

एक उदास रात !!!

11 बजने को हो गये हैं | रात जवां हो गयी है | फलक पर सितारे नाच रहे हैं, चाँद मुस्कुरा रहा है | चांदनी लोगों के दिलों में मुहब्बत के तराने गा रही है | कहीं ख्वाब पिघल रहे हैं, आरजुएं सिमट रहीं हैं, सदायें दम तोड़ रही हैं, खामोशियाँ बातें कर रही हैं, कहीं जिस्म नजदीक आ रहे हैं, रूहें एक हो रही हैं, धरती मुहब्बत के इस अफ़साने में डूब गयी है और मैं......!
अकेला हूँ मैं, निपट अकेला | इतना कि खुद से बातें करते हुए भी डर लगता है मुझे | दरवाजे पर ही बैठा हूँ तुम्हारी आस में | ये गहराई हुई रात, ये चाँद सितारे, ये फैली चांदनी, ये हवाएं, फिजायें.........क्या करूं मैं इनका | तुम बिन सब बेकार है, बेहया, बेशर्म लगते हैं मुझे | मेरे न चाहने पर भी चले ही आते हैं | हाँ, मेरे चाहने से होता भी क्या है ? मैंने कभी नहीं चाहा की कोई मेरी जिन्दगी में आये लेकिन तुम आ गयी | मैंने कभी नहीं चाहा था मुहब्बत करना लेकिन हो गयी | मैंने कभी नहीं चाहा था की तुम जाओ लेकिन तुम चली गयी | मैं चाहता हूँ तुम वापस आ जाओ लेकिन......|
खैर, मैं सच में बहुत उदास हूँ यार | जैसे किसी गरीब बच्चे का सबसे महंगा खिलौना टूट गया हो | अब हिम्मत भी नहीं रही तुमसे गुस्सा होने की, तुमसे शिकायत करने की, या फिर से तुमसे तुम्हे वापस मांगने की | शायद मैं मोहब्बत के उस मुकाम पर पहुँच गया हूँ जहाँ गिले-शिकवे, वफाई, बेवफ़ाई जैसे लफ्ज मर ही जाते हैं बस खामोश सा दर्द ही रह जाता है जो हर पर मेरे जिन्दा होने का अहसास कराता रहता है |
जानता हूँ | सितारे नाच गाकर चले जायेंगे | चाँद थक हार कर सो जायेगा | सहर में बरसी शबनम में सब मदहोशी खोने लगेंगे | पंछी चहचहाने लगेंगे, जानवर नदी की ओर जाने लगेंगे, कलियाँ फूल बनने लगेंगी, इन्सान बिस्तर पर करवट लेने लगेगा और मैं.........| मैं तब भी ऐसे ही उदास बैठा रहूँगा, तुम्हारी आस में ..........!

सफ़र में कभी कोई साथ आया ही नहीं !!!

नज़र नज़र में उसने फंसाया ही नहीं
उसकी बातों में कभी मैं आया ही नही !
जुस्तजू तो थी आरती उतारूँगा मैं भी
 चाँद मेरे घर तो कभी आया ही नही !
रौंदा है इक निकहत-ए ख्याल ने मुझे
साथ अपने अब अपना साया ही नहीं !
शरर उठी थी कहीं दस्त-ओ-दरिया में
खौफज़दा हो नौबहार आया ही नही ! मैं
 रूठूँ तो किससे रूठूँ, कौन मेरा है
सफ़र में कभी कोई साथ आया ही नहीं !

वरमाला प्रेम की !!

ऐसे ही हर शाम की तरह वह भी एक आवारगी भरी शाम थी | हम लाल और काले रंग की चतुर्भुज डिजाईन वाली शर्ट पहने, ऊपर के २ बटन खोले, कॉलर खड़ी किये वहीँ गली की मोड़ पर इकलौती पान वाली दूकान के किनारे ४ दोस्तों के साथ सिगरेट फूँक रहे थे और ये मोहतरमा बगल से गुजरीं | आवारा दोस्त, यूँ किसी को कैसे जाने देते | एक ने जोर से कश भरी, धुंए का छल्ला बनाया और छोड़ दिया इनकी तरफ | धुआं ने तो इन्हें नहीं छुआ लेकिन इन्होने काट खाने वाली नजरों से हम सबकी तरफ देखा |  “बदतमीज इनके मीठे ओंठों से बस इतना ही निकला था | आहा, उसी “बदतमीज” के साथ हमारा ये बदतमीज दिल भी धक् से हो गया | उसी जलती सिगरेट की छोटी सी आग ने हमें शर्म से जला के ख़ाक कर दिया |
हम भी दौड़ कर पहुँच गये उनके पास और कान पकड़ लिए | कक्षा ८ की पढ़ाई अब काम आने वाली थी | सॉरी (अंग्रेजी में), जब तक आप माफ़ नहीं करेंगी हम आपका रास्ता नहीं छोड़ेंगे |
उन्होंने झील सी आँखों का सारा पानी हम पर बरसा दिया “ये क्या बदतमीजी है ?”
हम तो डूब ही गये उनकी आँखों में | बचने की कोई गुजाइश नहीं थी | लेकिन देखिये न, उन्होंने की बचा लिया !
रास्ता छोडिये मेरा !
हुक्म था दिल की मल्लिका का | हमने भी हुक्म की तामील की और हट गये |
 “यू गो“ अंग्रेजी में फुल कॉन्फिडेंस के साथ बोले थे हम |
कुछ ही दिन में वही मोहतरमा हमारे लिए क्या नहीं हो गयी | सब्ज्परी, उड़नपरी, सोनपरी, अप्सरा, गुलाबो, जलेबी सब वहीँ तो थी हमारी (कैसे बनीं इसकी कहानी किसी दिन शाम की चाय पर बताऊंगा) | हम भी तो उनके सोना, बाबू और बच्चा हो गये थे |
दिल फ़ुटबाल सा उछलने लगे थे, रात जगते हुए कटने लगी ,यूँ कहें की उनके साथ जिन्दगी १७६५ की कश्मीर जैसी हो गयी | एक जन्नत | सजी, संवरी, महकी. हर रंगों में रंगी ,बेहद खूबसूरत |
लेकिन दुनिया का सितम, किसी की नजर लग गयी हमारी दुनिया को | पिछले हफ्ते ही शादी हो गयी हमारी सोनपरी की | शादी के ठीक पहले वाली रात उन्होंने फ़ोन पर कहा “ आप शादी में नहीं आयेंगे तो मैं मंडप में नही जाउंगी | वरमाला मैं किसी के भी गले में डालूं लेकिन मैं अपनी नजरों के सामने तुम्हे देखना चाहती हूँ |
दिल दर्द से टूट रहा था ,पैरों में चलने की शक्ति नहीं थी लेकिन जाते कैसे नहीं | खड़े हुए उनके सामने ओंठों पर मुस्कान, और आँखों में आंसू लिए | उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो वरमाला दूल्हे को नहीं हमें ही पहना रहीं हो |

खैर, शादी किसी और से हो गयी तो क्या, अब भी वो हमारे पास ही आती हैं | हर शाम जब हम अकेले होते हैं वो चली आती हैं हमारे पास | हम भी ठहरे यू.पी. के पक्के आशिक | ७ फेरे किसी और के साथ ले लिए तो क्या उनकी रूह तो अब भी हमारी रूह में ही वास करती है | उन्हें देखते ही हम झट से भर लेते हैं अपनी बाहों में और चूम लेती हैं वो हमारे पेशाने | हम मना करते हैं तो खिलखिलाकर हंस पड़ती हैं | लेकिन यह सब अब बस यादों में होता है | पक्के आशिक हैं न | ऐसे नहीं छोड़ेंगे | प्यार किया है, जिन्दगी भर निभायेंगे | 

चले जाओ, तुम्हे जो जाना है !!!

चले जाओ, तुम्हे जो जाना है
 यूँ रुक कर खुद पर सितम न करो 
 सुर्ख आँखें मेरी सुर्ख ही रहेंगी 
की तुम्हारे जाने के गम में 
 मेरे रुखसार से कोई बूँद न गुजरेगी
 यूँ ही कभी याद जो आई तुम्हारी
 फकत इतना सा होगा की
 दिल के किसी कोने में
 कई आईने एक साथ टूट जायेंगे 
 मगर हाँ, उस आईने में शक्ल तुम्हारी ही होगी !
 तुम, तुम्हे तो गुल-ए-राहें मिलेंगी
 हयात की हर शाम शबे-महताब मिलेंगी
 कफ़स तो नसीब में है हम जैसों के
 तुम्हे तो महलों की दरें दीवारें मिलेंगी
 रानाईयाँ बरसेंगी तुम पर इश्क़ की 
 खिजां में भी तुम्हे बहारें मिलेंगी 
मेरी सुबहें तो सुकूत-ए-मुसलसल होंगी
 हर सहर तुम्हे मीठी सदायें मिलेंगी 
 मगर जो अचानक कहीं देख लोगी तुम 
किसी की सुर्ख आँखों में मरते हुए खवाब 
कुछ टूटे फूटे बेमतलब अल्फाज 
 जो तुम्हारे कानों में गूँज जाएंगे
 मेरी यादें अनजाने ही खटखटा जाएँगी 
 तुम्हारे बंद दिल का कोई हिस्सा 
मैं याद आऊंगा तुम्हे , इतना की 
रुखसार पर तुम्हारे मोती पिघलने लगेंगे
 तुम समेटना चाहोगी उन टूटे अल्फाजों को
 हाथों में भरना चाहोगी, मगर कहाँ
 वह तो तुम्हारे हाथों से फिसल जायेंगे 
मिल जायेंगे तुम्हारी ही मिट्टी में 
 तुम वापस जो आना भी चाहोगी 
तो राहों से तुम्हारे ही निशान मिट चुके होंगे 
 तरस जाओगी मेरे कफ़स की खातिर 
 इतना की खुद से हार जाओगी तुम 
 मगर हम, हम तब भी नही मिलेंगे तुम्हे
 हम तो तुमसे पहले ही मिट चुके होंगे !!! 


 रुखसार-गाल 
 हयात-जिंदगी 
कफ़स- कैदखाना, पिंजरा 
रानाईयां- स्नेह
 खिजां - पतझड़,
 पतन सुकूत-ए-मुसलसल--लगातार ख़ामोशी का बने रहना

इक रात जो बसर हो जाए !!!

जिन्दगी में नौबहार की मुसलसल सहर हो जाए 
तुम्हारी बाहों में मेरी इक रात जो बसर हो जाए !
 ये रुखसार, ये पेशाने, ये साहिर आँखें तुम्हारी
जो निकलें नकाब से बाहर तो ग़ज़ल हो जाए !
नाओनोश भी, मदहोश भी, अहसास जफ़र का हो
तुम्हारी इनायत का जिस पर भी असर हो जाए !
कभी चाँद को जो देखो तुम आँखों में भरकर
रात का जैसे किसी सब्जपरी से मिलन हो जाये !
जिस रहगुजर से तुम गुजर जाओ, राहें कदम चूमे
अफ़सुर्दा उजाड़ सफ़र भी जाज़िब बदन हो जाए !!
अफ़सुर्दा – उदास
नाओनोश-  दावत करना
जफ़र- जीत 
साहिर – जादूगरी

जाज़िब – आकर्षक 

बेशक़ीमती गहने हों जैसे !!!


शर्म हया लाज घूंघट मुस्कराहट उसने पहने हैं कुछ ऐसे 
बड़ी दुर्लभता से मिलने वाले बेशक़ीमती गहने हों जैसे !!
जलती तपती उड़ती रेतों को वो अंजलि में यूँ भरती है 
मेले में खोकर फिर मिलने वाले उसके बच्चे हों जैसे !!
थमते बहते गिरते अश्कों को चूमती है जो नजरों से ही 
निकल कैद उन्मुक्त गगन में उड़ने वाले सपने हों जैसे !!
रूकती चलती थकती आगे बढ़ते ही जाना है उसको 
सारी दुनिया के गम निपट अकेले ही सहने हों जैसे !!!

वो रोज मेरी निगाहों में झांकता रहता है !!!


वो रोज मेरी निगाहों में झांकता रहता है
न जाने क्या उसमे ढूंढता रहता है 
जो ढक लेती हैं पलकें निगाहें मेरी 
उसकी आँखों से कुछ पिघलने लगता है 
जो पूछता हूँ उससे इस बेकरारी का सबब 
जवाब में बस आँखों से मुस्कुराने लगता है !!!

तुम्हारे आ जाने से क्या बदल जायेगा.!!!

तुम पूछते हो इक तुम्हारे आ जाने से क्या बदल जायेगा..??
 किसी के सूखे ओंठ खिलकर गुलाब की पंखुड़ी बन जायेंगे 
किसी के उजाड़ चेहरे पर गुलाबी रंगत खिल जायेगी
 किसी की सूखती आँखों से मुहब्बत की नमी बह जायेगी
 किसी के ख्वाब की सूखी टहनियों पर कोपलें लहलहा जायेगीं
 किसी की थमी हुई धड़कन से सदा निकल कर बिखर जाएगी 
और तुम हो कि पूछते हो, इक तुम्हारे आ जाने से क्या बदल जायेगा..??