कहना तो बहुत कुछ था लेकिन कभी कुछ कह नही पाया |
सच कहूँ तो अपने लब्जों से उसे कभी मैं छू नही पाया |
चाहता था कि मेरी हर सुबह उसके दीदार से ही शुरू हो
क्या करता? उसके कमरे का आइना मैं कभी बन नहीं पाया |
वो
खुदा था मेरा उसके लिए तो मुझे मरना भी मंजूर था
वक़्त
कुछ ऐसे चला कि मै कुछ भी साबित कर नही पाया |
आज भी
रहता हूँ उसी खंडहर में जहाँ से गुजर गया था वो
लौट
आएगा वो, इस उम्मीद को मैं दिल से मिटा नही पाया |