बसंत की बहारें आने में बस चंद दिन ही बचे है । हरे -भरे बगीचों में सावन के गीत गाते हुए झूले झूलना ।फूलो का खिलखिला कर मस्ती में हँसना । हवाओं का आवारा इधर -उधर भटकना । सब कितना खूबसूरत होता है । ऐसे में क्यों न उसे भी बुला लिया जाये जो चंद दिनों पहले दिल में एक प्यास जगा के चला गया था -
गुलशन में बहारे खिलने लगी हैं अब लौट भी आओ जानम।
देखो कलियाँ भी अब हँसने लगी हैं ,अब और न तडपाओ जानम ।
ये फूल बुलाते हैं मुझको, बस पूछते रहते है तुमको
गर जाता हूँ मिलने इनसे, बहुत सताते हैं मुझको
देखो !फूलो पर तितलियाँ मडराने लगी हैं,अब लौट भी आओ जानम।
गुलशन में बहारे खिलने लगी हैं अब लौट भी आओ जानम।
पल में धूप पल में छाव, और रंग बदलती शाम है
बारिश होती है फिर भी, दिल में अजब सी प्यास है
देखो ! हवाओ में भी खुशबू घुलने लगी है ,अब लौट भी आओ जानम।
कब आता है कब जाता है ,ये सावन भी क्या मौसम है
ओठो पे हँसी दे जाता है , खुशियों का ये सरगम है
देखो! फिजाओ में मस्ती छाने लगी है अब लौट भी आओ जानम।
देखो कलियाँ भी अब हँसने लगी है अब और न तडपाओ जानम ।