मैं अलबेला अल्हड मस्ताना ही अच्छा हूँ....
मैं दुनिया के आदिल तौर तरीके क्यों सीखूं !!
वो जो कभी मिले ,उसे जी भर के तुम जी लेना...
वो बचपन की तरह है फिर लौट के न आएगा !!
न जाने कितनी रातों से ये मुन्तजिर हैं तेरे..
इन चरागों में अब रौशनी कहाँ बची होगी !!!
मेरे दिल में अब दिल जैसा कुछ कहाँ रह गया है...
बसेरा बना लिया है इसे, कुछ बेवफा लोगों ने !
तुम जो नहीं हो पास मेरे
तो रात का मंजर कुछ यूँ नजर आता है...
सितारे दिल में उतर जाते हैं,
मगर चाँद न जाने कहाँ रह जाता है !
मैं टूटकर गिरा हूँ मिटटी के घरोंदों की तरह..
जमाना चाहता है मुझे चाँद सितारों की तरह !!!
खूबसूरती इस तरह छिपाती है वो दरिदों से....
रात के अंधेरों में छुपकर वो आईना देखती है !!!
शाम होते ही उनकी बालकनी के परदे सरकते हैं...
शाम होते ही मेरी कविताओ की सुबह होती है !!!
तुम, मैं, नदी का किनारा और डूबती शाम हो..
तुम कौन , मैं कौन ,चलो ये सब भूल जाते हैं !!!
ख्याल दर ख्याल कितने ख्याल उतरे हैं जेहन मे..
खुद को छोड़ के आना कभी तो सुनाएंगे तुम्हे !!!
कोई मेरे चाँद की मासूमियत की हद तो देखे जरा..
शाम ढलते ही ये चाँद देखने को मचलने लगता है !!!
कभी लौटने का मन करे तो खुद से लौट आना !!
रूठा हूँ बहुत , मैं अब कभी मनाने नहीं आऊंगा !!
थम से जाते हैं पाँव मेरे, निगाहें शरमा सी जाती हैं...
यूँ छुपछुप के कनखियों से तुम मुझे देखा न करो !!
मैं अपनी निगाहों से कुछ कहाँ देखता हूँ ..
तू मुझसे मेरा अच्छा बुरा मत पूछा कर !!
मैं तो अपनी गजलों में तुझे लिखता था...
तू मेरे शब्दों में मुझे क्यों ढूँढता रहा ?
तुम वो सारे हंसी लम्हे अपने साथ लेते जाना...
मैं तो मुन्तजिर हूँ दुनिया भर की उदासियों का !!!
मुझे यूँ अकेला छोड़ के मत जाओ..
मोहब्बत न सही, नफरत ही करो !!
यूँ तो नहीं था तुमसे कोई वाबस्ता हमारा....
तुम्हे आँखों में भर के, हम बहुत रोये हैं आज !
रात भर वो नहाता रहा है मेरे आसुंओं से....
तुम झूठ कहती हो, चाँद तुम्हारे घर में था !!!
पहली रात की जुदाई कुछ यूँ निभाई हमने....
वो बार-बार दिये जलाती रही, मैं बुझाता रहा !!
कभी डुबो देती हैं मुझे कभी खुद डूब जाती हैं...
आखिर इन साहिर निगाहों का इरादा क्या है !!
ए सड़क जरा जल्दी चल, मुझे घर पहुँचना है जल्दी..
पलकें बिछाये राहों पर कोई बाट जोहता होगा मेरी !!
वादे खूबसूरत होते हैं इसलिए कर लिए जाते हैं
अफ़सोस खूबसूरती ज्यादा दिन ठहरती नही हैं !!!
मेरी नादानियां, मेरी मासूमियत, मेरी मोहब्बत तुमसे है
यूँ खुले-आम मेरी शरारतों के चर्चे सबसे न किया करो !!
यूँ तो तुम्हे कभी भूल नहीं पाएंगे मगर...
लौटकर आओगी तो नाम पूछेंगे तुम्हारा !!!
जलती धूप के हजारों दरिया पार करके आया हूँ..
तुम्हारी जुल्फों की छाँव में इक पल गुजारने को !!
जब मेरा ही चाँद नही है मेरे पास, ए साहिब
तुम सौ चाँद मुझे दे दो, मैं लेकर क्या करूँगा !!
इस शुष्क रात में उन्होंने भी क्या गजब ठानी है...
जुल्फें भिगोकर अपनी आज चाँद को नहलाना है !!
आहिस्ता आहिस्ता चल निकला हूँ तेरी नरगिस गलियों से..
तूने भी क्या खूब पिलाई यारा, सुन्दर जाज़िब अँखियों से !!
कहाँ तुम भी इश्क के चक्कर में पड़े हुए हो...
नादान हो अभी तुम , बस नादानियां करो !
मेरी बाहों में लेटकर बिखरी चांदनी को आँखों में भर रही हो...
मैं दुनिया के आदिल तौर तरीके क्यों सीखूं !!
वो जो कभी मिले ,उसे जी भर के तुम जी लेना...
वो बचपन की तरह है फिर लौट के न आएगा !!
न जाने कितनी रातों से ये मुन्तजिर हैं तेरे..
इन चरागों में अब रौशनी कहाँ बची होगी !!!
मेरे दिल में अब दिल जैसा कुछ कहाँ रह गया है...
बसेरा बना लिया है इसे, कुछ बेवफा लोगों ने !
तुम जो नहीं हो पास मेरे
तो रात का मंजर कुछ यूँ नजर आता है...
सितारे दिल में उतर जाते हैं,
मगर चाँद न जाने कहाँ रह जाता है !
मैं टूटकर गिरा हूँ मिटटी के घरोंदों की तरह..
जमाना चाहता है मुझे चाँद सितारों की तरह !!!
खूबसूरती इस तरह छिपाती है वो दरिदों से....
रात के अंधेरों में छुपकर वो आईना देखती है !!!
शाम होते ही उनकी बालकनी के परदे सरकते हैं...
शाम होते ही मेरी कविताओ की सुबह होती है !!!
तुम, मैं, नदी का किनारा और डूबती शाम हो..
तुम कौन , मैं कौन ,चलो ये सब भूल जाते हैं !!!
ख्याल दर ख्याल कितने ख्याल उतरे हैं जेहन मे..
खुद को छोड़ के आना कभी तो सुनाएंगे तुम्हे !!!
कोई मेरे चाँद की मासूमियत की हद तो देखे जरा..
शाम ढलते ही ये चाँद देखने को मचलने लगता है !!!
कभी लौटने का मन करे तो खुद से लौट आना !!
रूठा हूँ बहुत , मैं अब कभी मनाने नहीं आऊंगा !!
थम से जाते हैं पाँव मेरे, निगाहें शरमा सी जाती हैं...
यूँ छुपछुप के कनखियों से तुम मुझे देखा न करो !!
मैं अपनी निगाहों से कुछ कहाँ देखता हूँ ..
तू मुझसे मेरा अच्छा बुरा मत पूछा कर !!
मैं तो अपनी गजलों में तुझे लिखता था...
तू मेरे शब्दों में मुझे क्यों ढूँढता रहा ?
तुम वो सारे हंसी लम्हे अपने साथ लेते जाना...
मैं तो मुन्तजिर हूँ दुनिया भर की उदासियों का !!!
मुझे यूँ अकेला छोड़ के मत जाओ..
मोहब्बत न सही, नफरत ही करो !!
यूँ तो नहीं था तुमसे कोई वाबस्ता हमारा....
तुम्हे आँखों में भर के, हम बहुत रोये हैं आज !
रात भर वो नहाता रहा है मेरे आसुंओं से....
तुम झूठ कहती हो, चाँद तुम्हारे घर में था !!!
पहली रात की जुदाई कुछ यूँ निभाई हमने....
वो बार-बार दिये जलाती रही, मैं बुझाता रहा !!
कभी डुबो देती हैं मुझे कभी खुद डूब जाती हैं...
आखिर इन साहिर निगाहों का इरादा क्या है !!
ए सड़क जरा जल्दी चल, मुझे घर पहुँचना है जल्दी..
पलकें बिछाये राहों पर कोई बाट जोहता होगा मेरी !!
वादे खूबसूरत होते हैं इसलिए कर लिए जाते हैं
अफ़सोस खूबसूरती ज्यादा दिन ठहरती नही हैं !!!
मेरी नादानियां, मेरी मासूमियत, मेरी मोहब्बत तुमसे है
यूँ खुले-आम मेरी शरारतों के चर्चे सबसे न किया करो !!
यूँ तो तुम्हे कभी भूल नहीं पाएंगे मगर...
लौटकर आओगी तो नाम पूछेंगे तुम्हारा !!!
जलती धूप के हजारों दरिया पार करके आया हूँ..
तुम्हारी जुल्फों की छाँव में इक पल गुजारने को !!
जब मेरा ही चाँद नही है मेरे पास, ए साहिब
तुम सौ चाँद मुझे दे दो, मैं लेकर क्या करूँगा !!
इस शुष्क रात में उन्होंने भी क्या गजब ठानी है...
जुल्फें भिगोकर अपनी आज चाँद को नहलाना है !!
आहिस्ता आहिस्ता चल निकला हूँ तेरी नरगिस गलियों से..
तूने भी क्या खूब पिलाई यारा, सुन्दर जाज़िब अँखियों से !!
कहाँ तुम भी इश्क के चक्कर में पड़े हुए हो...
नादान हो अभी तुम , बस नादानियां करो !
मेरी बाहों में लेटकर बिखरी चांदनी को आँखों में भर रही हो...
जानती हो!अमीरों को ऐसी फुरसत भरी रातें नसीब नहीं होती हैं !!
जो डर हो गुमनामी का तो मेरे शहर न आना तुम
यहाँ की गलियां भी बुलाएंगी तुम्हे मेरे ही नाम से !!!
नींद खुलते ही निगाहें अनायास ही बिस्तर पर ढूँढने लगी कुछ....
चादर-वादर, तकिया-वकिया सब देखा, कुछ भी तो नहीं मिला |
चादर-वादर, तकिया-वकिया सब देखा, कुछ भी तो नहीं मिला |
बेखबर सबसे एक दूजे की बाहों में खो जाएँ,
रात बहुत हो गयी है, चलो चुपचाप सो जाएँ !
रात बहुत हो गयी है, चलो चुपचाप सो जाएँ !
इश्क में तुम भी हद से गुजर जाना...
रात भर जगकर सहर में सो जाना !!!
रात भर जगकर सहर में सो जाना !!!
चाँद के बिन ये सितारे कितने तनहा लगते हैं, हैं न...
जिन्दगी मेरी भी बस कुछ ऐसे ही कटी जा रही है !!
जिन्दगी मेरी भी बस कुछ ऐसे ही कटी जा रही है !!
जब भी उदास हुआ करो,रो
दिया करो..
चेहरे पढना लोग भूल गये हैं अब !!!
अब भोर गए तुम आये भी, मैं वो रात का आलम कैसे लाऊँ !!
ताउम्र चमकता रहूंगा, तुमसे ये वादा रहा मेरा ,
बस
तुम अपनी आँखों का तारा बना लो मुझे !!
है सुबह, है धूप, है बदलियाँ भी, तुम नही
हो
रग रग में बसी हो तुम, कहीं भी
तुम नही हो !!!
क्या घर,क्या मंदिर, क्या मस्जिद,क्या मयखाना यारा !!
दिलोंजां को जहाँ मिले सुकूँ अपना तो वही घर है यारा !!
किस्सा खत्म हो मेरे आवारा आंसुओं का...
मेरी भटकती आरजुओं को कोई जहर दे दे !!!
खूबसूरत रात की मखमली कालीन बिछा दी है कुदरत ने..
अपनी तमन्नाओ से कहिये जरा, आकर रक्स करें इन पर !!!
वो कहती हैं वो कोई ग़ज़ल लिखना चाहती हैं...
तो क्या वो अब खुद को लिखना चाहती हैं ???
उसके नूर उसके गुरूर पर इख़्तियार सिर्फ मेरा है
उसे यूं न तकिए जनाब, वो चाँद
सिर्फ मेरा है !!!
आशिकों का ये इश्क कभी मुक़म्मल कहाँ होता है.
सफ़र एक खत्म होता है तो दूसरा शुरू होता है !!!
तमन्ना इतनी सी है की मैं मंच पर जाकर खामोश हो जाऊं,,,
सुनने वाले मगर फिर भी झूम-झूम कर तालियां बजाएं !!!
कभी हम भी छुएंगे चाँद को...
देखेंगे , कितने हसीन हो तुम !!
मसरूफियत इतनी कि अपने रब को भी भुलाये बैठे हैं...
इश्क के मारे खुद को जो दश्त-ओ-दरिया में सुलाए बैठे हैं !!!
दश्त-ओ-दरिया= desert and river
दश्त-ओ-दरिया= desert and river
यूँ शरमा के अंजुली में अपने चाँद को छिपाओ न तुम....
इस वस्ले-रात में अपने चाँद के नूर से भीगने दो मुझे !!!
कहने को तो उसने गुजारी है एक लंबी उम्र..
अफ़सोस ,हर लम्हा वो जीने को तरसता रहा !!!
कभी तुम भी तो बिखरो कुछ इस कदर...
बस और बस मुझमे उलझ के रह जाओ !!!
देखकर मंजर आज का, फलक के सितारे भी मदहोश हो गए..
मुझ तनहा को चाँद
पिलाने लगा जब मय अपने ही ओंठों से!
न कोई हमारा हो पाया , न हम किसी के हो पाये..
हमें सफ़र की रहगुजर प्यारी थी, सबों को मंजिल.!!!
किसको चाहें किसको पूजें, कौन है अपना यार यहाँ ...
दिल्लगी तो सब करते हैं , राँझा-हीर सा दिलदार कहाँ??
मत रो यूँ कि इश्क मेरा मरा नही है अभी....
बस थक गया था बहुत ,जरा नींद में है अभी...
फिर से चहारदीवारी की चकाचौंध में कैद हो गया मैं....
छोड़ खेतों की हरियाली, लो शहर दिल्ली आ गया मैं !!
देख मेरी हालत अब तो ख्वाब भी बोल बैठे हैं...
यार तुम ख्वाब में भी कोई ख्वाब न देखा करो !!!
महताब की चांदनी बटोरे वो हर शबे चली आती है..
जानती है वो भी , यूँ रौशनी में मुझे नींद नही आती !!
"अच्छे हैं हम" कोई पूछता है तो मुस्कुरा के जवाब दे देते हैं ..
कब मिलेगा कोई ऐसा
कभी जिससे सच बोल पाएंगे हम !!!
फागुन भी है, होली भी है, तेरी गुलाबी रंगत भी है ...
खुद में इतना रंग ले
मुझे कि बरखा भी धुल न पाये !!!
गीली जुल्फों को मुझपर झटककर मुझे जगाने का उनका ये अंदाज ....
जैसे भीगी सहर में शबनम कलियों को चूम उन्हें फूल बना देती है !!!
यूँ रूमानी लफ्जों की जादूगरी हम पर न आजमाइए.....
जरा करीब आइये मेरे, बाहों में लेकर मुझे चूम लीजिये !!!
हमारी बाहों की गर्मी से खुद को रिहा न कर पाओगे
कभी बस दूर से ही
देखने दो मुझे , तुम मेरे करीब मत आओ
!!
नजर से अच्छा या बुरा , रंग हल्का या चटक , दिखने में सरल या फैशनेबल
अरे साहब ! मोहब्बत करने निकले हो या
कपड़े खरीदने !!!
मोहब्बत में एक हाँ , एक ना क्या क्या करा देती है ...
जो हाँ तो जीते जी जन्नत , जो न तो जीते जी फ़ना !!!
अभी पीछे मुड़ा ही था कि यकायक तुमसे टकरा गया...
समझ नही आया
एक्सीडेंट था या कोई हसीं इत्तफाक !!!
तुम अब भी छुप छुप कर देख लेते हो मुझे....
बस इतनी ही वजह काफी
है मेरे जीने के लिए !!
हमारी बाहों की गर्मी से खुद को रिहा न कर पाओगे
कभी बस दूर स ही देखने दो मुझे , तुम मेरे करीब मत आओ !!
हाँ वो खुदा ही होगा जो तुम्हारे इतना चाहने पर भी तुझे छोड़ गया ,
कोई इंसान होता तो बनके पाजेब तुम्हारे
पैरों में उम्र भर खनकता रहता !!!
आ भी जाओ कि मुझे जरूरत है तुम्हारे शबनमी ओंठों की..
आज कल की हवाएँ मेरे
ओंठों की सुर्खियां बढ़ा रही हैं !!!
ग्रह नक्षत्र, चाँद सूरज, ये हाथों की लकीर भी बेकार रह जाए....
तुम इस हद तक चाहो
मुझे कि किस्मत भी हैरान रह जाए !!!
ये सियाह रात, ये चमकीले दिन महज धोखे हैं, फरेब हैं
तुम्हारा बुझा चेहरा
तो सियाह रात मेरी,
तुम्हारे मुस्कुराते
ओंठ तो दमकते दिन हैं मेरे !!!
भोर हो गयी है, जानता हूँ , मगर मेरे ख्वाब अभी भी आँखों में हैं....
बिखरा के अपनी
जुल्फें चेहरे पर मेरे , मुझे रात के कुछ पल
और दे दो !!!
दर्द तो बहुत हुआ मगर हम भी मुस्कुरा दिये...
जब हमने मोहब्बत कहा
और वो जोर से हंस दिये ..!!!
उसने पूछा " कभी देखा है झील में चाँद को तैरते हुए" ,,
हमने बस इतना ही कहा
" मेरी आँखों में झाँक लो " !!
भीगा मौसम, हलकी सर्दी, ठण्ड हवा के झोंके भी हैं
ऐसे में तू याद जो
आये, क्या ये दोष हमारा है
??
मैं तो हार चुका, आसमां पर ख्वाहिशें तुम तमाम लिख दो
ये जलते दिये
तुम्हारे हैं, जो बुझ गए उन्हे मेरे
नाम कर दो ।
आज कल कितनी अच्छी लगने लगी हो तुम ..
जैसे सर्दियों में
चटक खिली हुई मुलायम धूप !!!
मोहब्बत हो तो कैसे हो...
मैं जैसे कोई दीपक, तू अँधेरा दूर तक फैला हुआ ...
मैं एक पल को जल गया , तेरा अस्तित्व ही मिट गया !!!
वो शख्स खुदा होगा तेरा ,तू पूजता भी होगा उसे,,,
मोहब्बत तो बराबरी का
दर्जा देती है,,
...........................हमने बस इतना ही जाना
है !!!
मेरे लफ्ज कुछ इस कदर खोये हैं ....
खामोशियाँ आज भी ढूंढ
रही हैं उन्हें !!!
नजर उन्होंने बदली और आरोप हम पर लगा..
लोग कहतें हैं अब, कि मैं बदल गया हूँ |
क्या यार...
तू खुद को समंदर कहता है
और मुझे डुबाता भी नही है..........
तू जिसके इंतजार में अकेले सदियाँ बिता रहा है
वह कतरा था मोम का, कब का पिघल चुका है |
ये सूरज, ये चाँद, ये धरती, इनकी दोस्ती की कोई क्या मिशाल देगा
तप रही है प्यासी
धरती, बेचारा सूरज उसी पर
आग बरसाने को मजबूर है |
कल उसकी राहों में अगर मैंने फूल बिछा दिए होते
आज वो यूँ ही
संभल-संभल कर मेरे साथ न चलता |
अब तो हादसे भी यहाँ दोस्त की तरह हो गए हैं
साला, कहीं भी जाओ साथ चल देते हैं..........।
लाख दुनिया कहे कि वो भूल गयी है मुझे, मैं कैसे मान लूँ.........
जिसकी पायल की खनक
में अक्सर नाम बज उठता है मेरा !!!
क्या फायदा अगर बहुत हमदर्दी भी जताई
वो गरीब था,तुमने उसे 2 रोटी भी न खिलाई !!!
ये बेवक़्त की बारिश भी ना,
याद उसी की दिलाती है जिसे भूलना चाहते हो !!
जिसकी फिराक में आज तक भटकता रहा था मैं.....
वह एक बादल की तरह मिला और गुजर गया !!
चलो आओ अपनी दोस्ती का आज आखिरी जाम पीते हैं,
यादों की सिलवटों पर
अपना - अपना नाम लिखते हैं |
मैं बे-घर ही सही हूँ, और उसने ठिकाना कहीं और ढूंढ लिया है |
टूट जाने दे आशियाना
ये दोस्त, अब इसकी जरूरत नही
रही |
ये अनगिनत टिमटिमाते सितारों की सुन्दरता भी उसे कभी रोक न सकी |
न जाने किसकी चाहत
में बेचारा सदियों से आवारों की तरह घूम रहा है |
@चाँद !!!
हे खुदा ये तूने अपने बन्दों के साथ कैसी साजिश की है, क्या माया रची है ?
कि तेरे साथ रहकर ये
दुनिया खुश नहीं हैं और तेरे बगैर ये जी नही सकती |
तेरी एक झलक पाने को न जाने कब से बेताब है ये दुनिया
और तू है कि एक
शख्स की चाहत में दुनिया भुलाये बैठी है |
अगर कभी दिल टूट जाए, तो ज्यादा उदास मत
होना
यहाँ तो टूटते तारे
से भी हजारों ख्वाहिशें जुड़ जाती हैं |
उसने खोया है बहुत, पाया कुछ भी नही है |
वो हारा है बहुत, जीता कुछ भी नही है |
बस एक उम्मीद है, विश्वास है
और एक दीप है जलता
हुआ |
इसके सिवा उसके पास, रहा कुछ भी नही है |
कोई रास्ता ढूंढ लो
जहाँ प्यार की कदर हो
इज्जत मिले, कुछ बात बने |
जिस पर तुम चल रहे हो, वहां प्यार बिकता है |
ऐसे रास्ते, ऐसी पगडंडियां, ऐसे नज़ारे
मोह हैं, भ्रम हैं, गुमराही
का सबब है |
तुम उसके कंधे पर सिर
रखकर रोये तो क्या रोये
मुझे देखो, मै और मेरी तन्हाई दोनों गले मिल के
रोये |
तुम्हे हक है अगर
जाना हो तो मुझसे कहीं बहुत दूर चली जाओ |
यूँ तुम्हारा पास
होकर भी मेरे पास ना होना मुझे अच्छा नही लगता |
उनकी खुशियों की खातिर मै उनकी नजरों से
बहुत दूर
चला गया
और
वो
नासमझ समझ बैठी कि मैंने ही उन्हें
भुला दिया ।
बहुत इन्तजार किया
तेरा अब अकेले ही बढ़ता हूँ आगे
हमारे सपने जो पीछे
छूट गये है उन्हें तुम समेट लाना |
माना कि तुझे खेलना
अच्छा लगता है
तो लहरों से खेल ,बरसते पानी से खेल ।
तू जी भर के खेल, पर इतना तो रहम कर
इस तरह किसी के जज्बातों से मत मत खेल ।
सुन्दरता के घमंड में मुझे छोड़ देने वाली
तुम इतनी खूबसूरत भी न थी
वो तो मेरी आँखें की
नादानी थी
जिन्होंने तुम्हे
खूबसूरत बना दिया ।
मै उस वक्त के गुजर जाने का इन्तजार करता
रहा
और कमबख्त वक्त वहीँ
खड़ा मुझ पर हँसता रहा ।
एक नशा सा है उसके साथ चलने में
उसे छुपकर देखने में ,उसे याद करने में
उसे क्या पता क्या
महसूस करता हूँ मै
उसे सोचने में , उसे प्यार करने में ।
क्या हश्र होगा उसका
जो बनेगा तेरा हमसफ़र जिन्दगी भर के लिए
तेरे साथ बिताये एक छोटे से लम्हे में , मै
अपने
होश गवां बैठा हूँ ।
तुम्हे अपनी खूबसूरती पर घमंड है ,
मुझे अपनी मुह़ब्बत
पर नाज है ।
तुम्हारी खूबसूरती
दिन पर दिन ढलती जाएगी ,
पर मेरी मुह़ब्बत दिन
पर दिन बढ़ती जाएगी ।
रंजिशें बढ़ गयी ,दूरियां बढ़ गयी ,अब हम दोस्त न रहे
वजह बस इतनी सी थी ,
तुम आगे बढ़ना नही
चाहते थे,मै रुकना नही जानता था ।
कुछ ठंडक सी थी फिजा में
हवा बहकी थी ,कि कोई तूफ़ान
आया था
रोशनी भी हुई थी जहाँ
में
बिजली चमकी थी, कि कोई चाँद
निकला था
होश आया तो पता चला
कुछ नही हुआ था
बस तेरा खवाब आया था ।
अभी रात का आखिरी
पहर बाकी है ।
मेरे
साथ तुम्हारा कुछ सफ़र बाकी है
तुम्हारी
ख्वाहिशें बनेँगी हकीकत
कि
अभी मेरी दुआओं का
असर बाकी है ।
बादलों से
भी ज्यादा आवारा है ये आँखें
बिन बताये जब चाहती है बरस जाती है ।
बहुत दिनों
बाद कोई गुलाब खिला है इसे खिला रहने दो
इसी बहाने बाग़ में थोड़ी खुशबू -ए -चमन रहने
दो ।
वक़्त आने पर लब खुद - ब - खुद फिसल जायेंगे
बात जो दिल में दबी
है अभी दबी रहने दो ।
तुम ख्वाब देखने से डरते हो ।
मै ख्वाब खोने से डरता हूँ ।
रात आती है और चली
जाती है
न तुम सोते हो , न मै सोता
हूँ ।
कभी इनके चेहरे पर न जाना ,बड़े मासूम
लगते है ।
छुप कर देखो कभी इनको ,हर पल ये अक्स बदलते है ।
किसी की याद में और
कितना जागोगे
अब सो भी जाओ
यारों बड़ी रात हुई ।
सुबह उठकर बताना न
भूलना
सपने में किस-किस से क्या बात हुई ।
शायद मुझे
सुनने को मिल जाये ।
यार आज जिन्दगी से मुलाकात हुई
।
वो मेरे आने-जाने
का इस कदर खयाल रखती है ,
जब आते देखती हैं , तो
मुह फेर
लेती
है
और चले जाने पर आने
का बेसब्री से इन्तजार करती हैं ।
लोगो को शिकायत है की मै अपने प्यार में खुदा को भी भूल जाता हूँ
।
कैसे समझाऊ उन्हें कि खुदा का दूसरा नाम ही मोहब्बत
है ।
मैंने अपनी जिन्दगी उसके नाम कर
दी
अब रोता भी हूँ , तो अपनी ख़ुशी के लिए ।
बहुत दूर तक ले जाएँगी ये राहें
मै भी अकेला हूँ , तुम भी अकेले।
अपना हमसफ़र बना लो
मुझे
कुछ सफ़र कटे ,कुछ दिल बहले ।
तुम्हे भूलते भूलते इस कदर भूल गया
जब भी कुछ याद आया बस
तू याद आया ।
ये इश्क भी न, कितना अजीब होता है
एक नजर में हो जाता
है ,एक झटके में टूट जाता है ।
लेकिन जिदगी भर के
लिए अपनी तड़फ छोड़ जाता है |
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