रात के अंधेरों में
झोपड़े के झरोखों से
झांकता वो चाँद
बहुत खूबसूरत ,उजला
कुछ दाग जरूर हैं उसमे
पर है वो बहुत मासूम
न जाने कहाँ ,किधर
ख्यालों में खोया हुआ
बस भटकता रहता है ।
तलाश नही है उसे किसी की
फिर भी न जाने क्यों ।
अच्छी लगने लगी हैं उसे अब
ये रात की खामोशियाँ
ये जागती हुई तन्हाइयां ।
सूरज की आहत मिलते ही
न जाने कहाँ किधर
पर छुप जाता है वो ।
डरता नही है वो किसी से
पर वो रहना ही नही चाहता
इन उजालों में ।
शायद इन उजालों की चकाचौंध ने
बहुत परेशान किया है उसे
बहुत सताया है उसे ।
अब इन सब से दूर
इन उजालों से बेखबर
नीले-नीले आसमां के तले
जगमगाते सितारों के दुनिया में
रहता है वो ,वही से हंसता है वो ।
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