आज फलक पर चाँद पूरा निकला तो पूर्णिमा की याद आई ।
आज फिर गाँव का पीपल चांदनी में नहाया तो पूर्णिमा की याद आई।
इंतजार करते दीपक बुझ से गए थे अंधेरो में डूबे थे आशियाने
आज रात सूने आँगन को चमकते देखा तो पूर्णिमा की याद आई।
वादियों की खामोशियाँ हवाओ का बिना आवाज किये गुजर जाना
आज परियो की झंकार से वादियों को झूमते देखा तो पूर्णिमा की याद आई।
सुबह से चमकता सूरज था और शाम का सुहाना मौसम
मगर आधी रात होने को आई और चाँद न निकला तो पूर्णिमा की याद आई ।
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