दिन ,माह, बरस बीत गए
तुम लौट कर नहीं आये
हाँ, लौटना कठिन होता है !
कितने दिनों से उदास चांदनी
खिड़की से अंदर झांकती है
तुम्हे खोजती है, नहीं पाती है
चुपचाप लौट जाती है
हाँ, लौटना कठिन होता है !!
कुछ ख्वाब दिल में उतरते हैं
हर शाम बस यूँ ही अकस्मात्
तुम्हारे साथ जीने की तमन्ना लिये
तुम्हे ढूंढते हैं हर कोने में
मगर निराश होना पड़ता है उन्हें
घुप्प अँधेरे में चुपचाप लौट जाते हैं वे
हाँ , लौटना कठिन होता है !!!
कभी कुछ कदम बढ़ाता हूँ मैं भी
तुम्हारे ही पद-चिन्हों पर
तुम तक पहुँचने की चाह लिए
मगर ये चिन्ह साथ कहाँ देते हैं
दसों दिशाओं ने मिटा दिए हैं तुम्हारे निशां
मुझे विवश करती है ये प्रकृति लौट जाने को
और एक दिन मैं लौट आता हूँ
हाँ, लौटना कठिन होता है !!!
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