जब चाँद ही मुझसे रूठ गया !!!

अब  शाम सुहानी आये तो  क्या, जब गुलशन मुझसे रूठ  गया
अब रात चांदनी बरसे तो क्या , जब चाँद ही मुझसे रूठ गया ।
आँख लगी थी आसमान पर, कब काले बादल  आएंगे 
अपनी कोमल कोमल  बूंदों  से , धरती को नहलाएँगे
हम झूमेंगे मस्ती  में,  संग - संग इतरायेंगे
 अब रोज घटा बरसे तो क्या, जब साथ ही तुमसे  छूट  गया ।
अब रात चांदनी बरसे तो क्या ,जब चाँद ही मुझसे रूठ गया ।
मुझे छोड़कर गर्दिश में ,सारी  दुनिया को अपनाया तुमने
जब भी चाहा तेरा बनना ,हर बार मुझे ठुकराया तुमने
जब भी चाहा सच सुनना  ,झूठ  बोल बहलाया तुमने 
अब बहुत करीब तुम आये तो क्या ,जब मन ही तुमसे रूठ गया ।
अब रात चांदनी बरसे तो क्या ,जब चाँद ही मुझसे रूठ गया ।


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