तुम यूँ ही अच्छे लगते हो !!!

अभी कुछ न कहो, तुम यूँ ही खामोश अच्छे लगते हो |
भोर की किरण में फूल सा खिलते हुए अच्छे लगते हो |
कोई कह दे ,कि आइना में चेहरा संवरता है तो मत सुनना 
इन्ही उलझी जुल्फों में तुम हँसते हुए अच्छे लगते हो |
आखिर ये दिल का मामला है, जाकर मिल आओ उससे भी

उसकी आँखों में खुद को तुम ढूंढते हुए अच्छे लगते हो |
नजारों का इशारा है खुद को मिटा दो इन लम्हों के दामन में 
नादान पलों के झूले में तुम झूलते हुए अच्छे लगते हो |
मंजिलो का क्या है ?देख लेना मिल जायेंगी ये भी एक दिन 
मत भागो इनके पीछे, तुम चलते हुए ही अच्छे लगते हो |

अफ़सोस मत कर मेरे यारा !!!

कोई भीड़ में रोता है तो कोई तन्हाई में हँसता है मेरे यारा |
तू भी अब सोच मत, जिन्दगी जैसी है बस जी ले मेरे यारा |
माना वो बहुत खूबसूरत थे, तेरे अपने थे, मगर अब क्या हो ?
वो सपने दिन के थे और अब तो साँझ हो गयी है मेरे यारा |
यकीनन वो बादल फिर से आयेंगे और बरसेंगे झूम-झूम कर
जो बिखर गये पानी बनकर, उनका अफ़सोस मत कर मेरे यारा |
और ये यादों की साजिश तो सदियों से रचता आया है ये जहाँ,
भूलकर सब तू आगे बढ़ता जा, पीछे मुड़ कर न देख मेरे यारा |

जिन्दगी कट ही जाती है !!!

एक लम्हा, एक शब्द, एक गलती सब कुछ मिटा देती है | हमें आसमान से जमीन पर ला पटकती है | पल भर में हमारी खुशियों को गम में बदल देती है | हमें असहाय बना देती है | हमें पागल कर देती है | कब, कहाँ, कैसे कौन सा रिश्ता टूट जाए कुछ कहा नही जा सकता | देखा जाए तो रिश्ते शाखों पर झूलती पत्तियों की तरह होते हैं | शाखों पर पत्तियां नकलती हैं, बढती हैं, हवा के संग-संग मस्ती में झूमती हैं | लेकिन अचानक हवा का एक तेज झोंका उस पत्ती को उस शाखा से अलग कर ना जाने कहाँ ले जाता है | शाखा और पत्ती की ये दोस्ती, ये रिश्ता, ये प्यार पल भर में समाप्त हो जाता है | सब कुछ बिखर जाता है | कुछ रह जाता है तो वह है बिखरे हुए चुनिंदा अहसास, सकुचाई सी सहमी सी टुकड़ों में बंटी हुई कुछ यादें और उन यहाँ वहां फैले उन यादों के निशान | एक बार महसूस करिये उस अहसास को जब बेड के चादर की सिकुड़न जैसी की तैसी ही रहती है लेकिन उस बेड पर सोने वाला बहुत दूर जा चुका होता है | आप उस सिकुड़न को देखकर कभी मुस्कुराते हैं तो कभी रोते हैं | किसी की यादों को बटोरने की खातिर आप उस सिकुडन को भी सहेज लेना चाहते हैं | जब आप हर रोज उसी जगह पर जाकर घंटों बैठे रहते हैं जहाँ वह कभी आपके साथ बैठा करता था | दिल की बातें होती थीं, कुछ वादे होते थे, थोड़ी सी तकरार होती थी और फिर बड़ी देर तक हंसी की लहरें उठती रहती थीं | जब घर के कोने में पड़ी उसकी टूटी चप्पल ही आपके लिए सब कुछ हो जाती है | जब डायरी में रखे मुरझाये हुए फूल को आप सौ बार देखते हैं | आप उस गाने को सौ बार सुनते हैं जिसे आप कभी सुनना नही चाहते थे लेकिन उसने जबरदस्ती आपको सुनाया था |

सच में इन लम्हों में कितना प्यार है, कितना अपनापन हैं | यही कुछ लम्हे हैं जब हम जिन्दगी जीते हैं, बाकी समय तो बस हम जिन्दगी गुजारते हैं | तो क्यों न ऐसे ही कुछ और लम्हे जियें | किसी को अपना बनायें, उसके करीब जाएँ | इतना करीब कि उसकी धड़कनों की धक्-धक् भी हम आराम से सुन सकें | उसके साँसों की गर्मी को हम महसूस कर सकें | उसके बिना बोले उसकी मन की बात समझ जाएँ | कभी हम उससे रूठें तो कभी उसे मनाएं | और ऐसे ही उम्र गुजार दें | बाकी.............जैसे तैसे जिन्दगी तो सबकी कट ही जाती है |