वो खुदा था मेरा !!!

कहना तो बहुत कुछ था लेकिन कभी कुछ कह नही पाया |
सच कहूँ तो अपने लब्जों से उसे कभी मैं छू नही पाया |
चाहता था कि मेरी हर सुबह उसके दीदार से ही शुरू हो
क्या करता? उसके कमरे का आइना मैं कभी बन नहीं पाया |
वो खुदा था मेरा उसके लिए तो मुझे मरना भी मंजूर था
वक़्त कुछ ऐसे चला कि मै कुछ भी साबित कर नही पाया |
आज भी रहता हूँ उसी खंडहर में जहाँ से गुजर गया था वो
लौट आएगा वो, इस उम्मीद को मैं दिल से मिटा नही पाया |

जो खुद को मिटाने चला था !!!

किसी कोने में रो रहा है वो, जो सभी को हंसाने चला था |
अब कौन याद करता है उसे, जो खुद को मिटाने चला था |
ये दुनिया कितनी जालिम है जो उसे भी चोर कह दिया 
वह तो  बस वक्त से दो लम्हा खुद के लिए चुराने चला था |
कभी दर्शन तो न हुए, लेकिन मंदिर के चौखट पर मर गया वो
गरीब, जो आज अपने भगवान को खाली हाथ पूजने चला था |
और देख लो हार कर वो भी वापस लौट आया है “प्रकाश”
परिंदा जो कल बादलों को चीर आसमान को छूने चला था | 

बंधन, जो जाने नही देता !!!

थक सी गयी है अब वह ,
कच्चे रिश्ते निभाते- निभाते 
बहुत परेशान हो गयी है वह 
इन रिश्तों के बोझ तले दबकर
नही चाहती है अब वह 
और किसी का साथ
नही चाहती है अब वह 
पकड़ कर चलने को किसी का हाथ 
वह आजाद उड़ना चाहती है 
अपने पंखों के सहारे 
इन मदमस्त हवाओं के साथ,
नीले नीले बादलों के बीच,
लेकिन जैसे ही वह अपने कदम आगे बढाती है 
उसे याद आ जाता है 
वो सुन्दर हँसता हुआ चेहरा 
वो उसके बाहों की नरमी 
उसके साँसों की गर्मी 
जिनमे वह अक्सर ही डूब जाया करती थी |
इन्ही यादों के संग जन्म लेती है एक तीव्र इच्छा 
कि जाने से पहले देख लूँ उसे बस एक बार
बस "अंतिम  बार" इसके बाद कभी नहीं 
और उसे देखने के बाद वह कहीं जा नही पाती 
उसकी यही चाहत उसे रोक लेती है 
और उसका "अंतिम बार" कभी नही आता |