कभी चांदनी तो कभी अँधेरी ये रात !!!

कभी  चांदनी तो कभी अँधेरी ये रात । 
सूरज की आखिरी किरण
आसमाँ का कहीं  लाल ,कहीं  गुलाबी
कहीं नीले ,तो कहीं पीले रंग की चादर ओढ़ लेना
अन्दर तक ठण्ड का एहसास  जगाती
शीतल हवा का मस्ती में आवारा भटकना ।
बता रहे है इस जागते जहाँ को
कि  शाम बस चंद  पलों  की मेह्मान  है ।
इसी शाम की शीतल छांव  में
परिंदे ,इंसान ,जानवर सब थके हारे
लौट पड़े है घर की  तरफ ।
और देखते ही देखते कुछ ही पलों में
चाँद आसमां  को ही नदी बना
हौले -हौले तैरने लगता है ।
और छा  जाता है अँधेरा हर तरफ
घुल जाती है इन अंधेरों में खामोशियाँ
तो कभी खामोशियों में बाधा डालती
हवाओं की सरसराहट ।
ये चाँद, ये हवाये ,ये खामोशियाँ
बता रही हैं की रात आ गयी
और सुला गयी इस जागते जहाँ को
साथ में कितने सपने ,कितने बातें
कितने वादे , कितनी तकरारे
कितने दर्द ,कितनी पीड़ा
सब को सुला देती है ये रात 
आजाद कर देती है हमें
इनकी जकड़न से ।
और जगा  जाती  है
मन में कुछ मीठे - प्यारे सपने
अनमोल यादों के सुनहरे पल
कोई प्यारा देखा -अनदेखा  चेहरा 
और साथ में दे जाती है
एहसास एक ऐसी जिन्दगी  का
जो हम हमेशा से जीना चाहते हैं ।
कितनी प्यारी, कितनी सुन्दर 
कितनी अपनी होती है न, ये रात
कभी  चांदनी तो कभी अँधेरी ये रात । 

तुम हर पल याद आते हो !!!

सुबह सुबह ओस की बूंदों में
दोपहर धूप की अगड़ाई में
शाम फूलों की खुशबू में
तुम ही तुम नजर आते हो
 कहीं भी जाऊं ,कहीं  भी रहूँ
 नींद में रहूँ या, होश में रहूँ
 पास या तुझसे बहुत दूर रहूँ
 हर जगह ,हर वक्त ,सब कहीं
اतुम ही तुम नजर आते हो
मुझे पता है,खबर तुम्हे भी है,
पर समझ नहीं आता ,कैसे कहूँ
कि तुम हर पल याद आते हो । 


एक ही बूँद से भीगें हम दोनों !!

एक ही बूँद से भीगें  हम दोनों ।
एक बेगाने से मौसम में
 एक अनजाने से मिलने
छम -छम  आवाज करती आई  थी  तुम
रिमझिम-रिमझिम बरसात संग लायी थी तुम
तुम्हे देख  जाने कितने ख्वाब जागे थे मन में
न जाने कितने अरमान उमड़े थे मुझमे
पैरों से पानी को उछालती 
अपने भीगते आँचल को हवा में लहरा
चेहरे को ऊपर उठा आँखे बंदकर
अपने ओठो पर ठहरी बूंदों को सहलाती
मेरा नाम अपने ओठों पर लायी थी तुम
कुछ शरारती बूँदें तुम्हारे गालों को चूमती
तुम्हारे कपड़ो को भेदती
भिगो रही थी तुम्हारे तन-मन  को
तभी हवा का सर्द झोंका आया था
तुम सर से पाँव तक कांपती
छप -छप  करती मेरी तरफ भागती
मुझमे लिपट गयी थी तुम
और फिर   घंटों बारिश में
एक ही बूँद  से
भीगे  थे हम दोनों
वो बारिश फिर  आई है
तुम भी छम-छम करती आओं न
फिर से हवा का झोंका आये
 फिर से तुम लिपटो मुझसे
और एक ही बूँद से भीगें  हम दोनों ।