तुम जो छोड़ जाओगी घर को..!!!


न चूड़ियों की खनखन होगी
न पायलों की छनछन होगी 
तुम जो छोड़ जाओगी घर को 
न बालियों की चमचम होगी !
दरवाजा चरमराकर रह जायेगा 
दरो-दीवारों की रंगत उतर जायेगी
रात चाँद खिड़की पर क्यों आएगा 
रात भर घर में रौशनी न होगी 
न सहर में फूलों पर शबनम होगी !
       तुम जो छोड़ जाओगी घर को.......

आओ कभी यूँ ही, अचानक !!!


आओ कभी यूँ ही, अचानक
न कोई फ़ोन , न कोई मैसेज
न कोई बहाना, न कोई कहासुनी, 
बस यूँ ही ,कभी अचानक 
जैसे टूट पड़ता है कोई सितारा
यूँ ही अचानक, किसी रात ! 
वही पीली साड़ी, हाथ 2 कंगन,
माथे पर छोटी सी कत्थई बिंदी 
न साजो-सामान से लिपा चेहरा
न ही सृंगार से लदा तुम्हारा बदन
दूर से ही मुझे देख दौड़ पड़ना 
शाम के धुंधलके में लिपट जाना 
गले में डाल देना अपनी बाहें 
और रंग जाना लाल मिटटी से 
बस यही तुम्हारा श्रृंगार होगा 
कभी यूँ ही किसी दिन, अचानक !!
शाम ढले, रात ढले, दिन आये 
तुम्हारे अधरों पर लौटने की जिद न आये
किसी सहर की भीगी हवाओं में 
सुनसान सड़क के किनारे
बिखरे गीले पत्तों को उठाते उड़ाते 
चले जाएँ बड़ी दूर तक 
एक दूसरे का हाथ थामे हुए
बेवजह, बेधड़क , बिन आवाज
न देर होने का भय हो 
न जलती धूप का असर हो 
चलते जाएँ हम तुम अनवरत
बस यूँ ही अचानक किसी दिन
न कोई फ़ोन, न कोई मेसेज !!!!

हाँ, मुझे भी तो अब तुमसे डर लगता है !!


हाँ, मैं अब तुम्हे “हाय-हेल्लो” नहीं करता, तुम्हे फ़ोन भी नहीं करता, तुमसे बात करने की शुरुवात नहीं करता ! हालाँकि मन बहुत करता है कि तुम्हे दिन भर की बातें बताऊँ ! तुमसे बताऊँ की आज बारिश की वजह से मौसम बहुत खुशनुमा हो गया है ठीक वैसे ही जिस शाम हम पहली बार मिले थे ! तुमसे बताऊँ की आज दूध नहीं था और बाहर जाने का मन नही हुआ तो मैंने काली चाय बनायीं ! तुम्हे फ़ोन करके बताऊँ कि आज ऑफिस में मुझे प्रमोशन मिला है और मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारे फेवरेट कलर की ड्रेस खरीदी है !
लेकिन मैं ये सब नहीं बता पाता ! मैं डर गया हूँ तुम्हारे जवाबों से, जब तुम हेल्लो के जवाब में लिखती हो “थोड़ी बिजी हूँ” ! कॉल पर मैं रहता हूँ और तुम बातें किसी और से करती हो ! डर लगता है यह सोचकर कि तुम्हारे पास तुम्हारी व्यस्त जिन्दगी में मेरे लिए 2 मिनट भी नहीं है ! कुछ कहता नहीं हूँ लेकिन बहुत अजीब लगता है जब अब भी तुम बात ख़त्म करते वक्त कहती हो “लव यू” ! हिम्मत मैं भी करता हूँ “लव यू टू” बोलने की लेकिन आवाज गले में ही फंसकर रह जाती है जैसे बंद पिंजरे में कैद पक्षी अंदर ही अंदर कितना भी फड़फड़ाए लेकिन बाहर नहीं निकल पाता ! 
 तुम अक्सर कहा करती थी पेड़ों से जड़ सूख जाने के बाद उसके पत्ते हरे नहीं रह सकते ! अब तुम इसे कभी नहीं दोहराती ! भूल गयी हो शायद ! हाँ अपने काम में सब कुछ तो भूल गयी हो तुम !
हर इंसान की दिली ख्वाहिश होती है कि वो अपने हमसफ़र के साथ एक बेहद हसीन सफ़र की शुरुवात करे और सफ़र के बीच में ही किसी दिलकश राहे-मोहब्बत पर जाकर ठहर जाए ! इस ठहरी हुई राह की कोई मंजिल न हो, कोई पता न हो, कुछ हासिल करने की जल्दी न हो, बेहद अंतहीन, अनंत तक, सबसे पार क्षितिज तक, और हो तो बस दूर दूर तक फैली मोहब्बत की खुशबू ! लेकिन ऐसा होता कहाँ है ! प्यार की राह से हम कब डर, भय, आशंकाओं की राह पर आ जाते हैं, हमें पता ही नहीं चलता ! मोहब्बत किसी टूटी हुई डाली के पत्तों की तरह सूख जाती है,रह जाता है तो बस उसके टूटे फूटे बिखरे कुछ अंश, जिसे समेटने, सहेजने की कोशिश में हम अपनी बाकी जिन्दगी गुजार देते हैं और हमें लगता है हम अब भी मोहब्बत कर रहे हैं, हम सही राह पर हैं ! बैसाखी पर चलने वाली लंगड़ी मोहब्बत को हम 4 पैरों पर नाचने वाली मोहब्बत मान बैठते हैं ! कितना गलत है सब, कितनी झूठी मिथ्याओं पर टिकी है ये दुनिया ! 
हाँ मुझे भी तो अब तुमसे डर लगता है !!