बादल., जो बरस नहीं पाए !!!

मैं कह नही पाया तुमसे 
लेकिन कल देखा था मैंने 
तुम्हारी आँखों में 
छोटे छोटे छिटके हुए उदास
तनहा बादल !
 बादल जो बरसना चाहते थे 
 किसी के कन्धों पर 
 या शायद महसूस करना चाहते थे 
 किसी मर्द के सख्त हाथों को 
 लेकिन अफ़सोस..... वो नही बरस पाये !
 बादल, वो बरसते भी तो किस पर 
कौन समझता उन्हें,
 वो जो आज तक खुद को ही नही समझ पाये
 या वो जो आँखों में नहीं 
बस बदन को निहारते रहते हैं ! 
या शायद वो डर रहे हैं 
 कि कहीं उन्हें यूँ बरसता देख कोई हंस ना दे !!

जुदा कभी न होंगे हम !!!

धीरे धीरे देखो शाम जा रही कहीं
 तारों को लेके संग, है रात आ रही 
 चाँद मेरे छत पे आ, बुला रहा
 हमें चांदनी दे रही छाँव है हमें 
ठंडी ठण्डी सी बयार गीत गा रही 
 नींद गा के लोरियाँ हमें सुला रही 
 ऐसे में तुम उठो, जरा सा निगाह लो मुझे 
 बहक रहा हूँ मैं जरा, संभाल लो मुझे
 फिर लेके तुम चलो मुझे कहीं ऐसे जहाँ
 झूमती हो फिजा, पारियां नाचती हो वहां
 फिर लेके बाहों में मुझे झूल जाना तुम 
 आँखों में बसा के, सीने से लगाना तुम 
 जब रात हो आधी , मेरे पास आना तुम
 लेके हाथ मेरा, अपने गालों पे लगाना तुम
 यूँ ही साथ साथ सारी रात घूमेंगे हम 
 हो जुदा ये दुनिया सारी, जुदा कभी न होंगे हम ...
 जुदा कभी न होंगे हम ,,, 
जुदा कभी न होंगे हम !!!

चाँद आईना बने हमारा !!!

कहीं दरिया किनारे वो डूबती शाम
 कहीं निखरती चांदनी तो चमकता चाँद
 वहीँ ठंढ ओढ़े वो कांपती रात 
 उन्हीं लम्हों में कहीं गुजारिश करते बस मैं और तुम
 गुजारिश की वो नदी निर्मल कर दे 
 हमारे तन मन को इस कदर
 जैसे ॐ के जटा से निकली गंगा की पवित्र धारा ! 
चांदनी कुछ इस कदर टूटकर बरसे हम पर
 की हम देख लें एक दूसरे के मन के आर पार
 जिसमे बस हमीं बसें हो सदा सदा के लिए ! 
चाँद ऐसा आईना बने हमारा 
 जिसमे रात भर देखें हम 
तब भी हमें बस एक जिस्म दिखाई दे
 जैसे दो रूह एक हो गयी हों !
 ठंडी रात मेहरबान हो हम पर ऐसे 
की तेरे जिस्म की पिघलती हर आरजू 
मेरे सीने में कहीं जा बसे 
 और हर रात वो पूरी हो 
 आहिस्ता आहिस्ता करके !!!