छू गयी थीं मेरी उँगलियाँ !!!


याद नहीं हैं मगर 
कभी ये भी हुआ था...
कि अनजाने में ही मगर 
छू गयी थीं
मेरी उँगलियाँ उनसे ....
सहमकर उसने खींच लीं थी
अपनी हथेलियाँ पीछे...
थोड़ी ही देर में मगर 
उसने रख दिए थे अपने हाथ
मेरे हाथों पर ......
और तभी बहुत धीरे से मगर 
कह दिया था उसकी आँखों ने 
कि तुम्हारे पास होने का अहसास 
अच्छा लगता है मुझे !!!

दो रूहों को हो जाने दो एक !!!


अब और कब तक , आखिर कब तक
मैं अपने अंदर बाँध कर रखूं
उमड़ जाने को तैयार इन तूफानों को 
अब नहीं सहा जाता है मुझसे इस तरह 
जज्बातों को सकुचाये हुए रखना 
जो बस तुम्हारी ही तरफ देख रहे हैं 
कि कब तुम प्यार से इन्हें अपना लोगी
देखो मैं नही जानता तुम्हारे मन की बात 
लेकिन तोड़ रहा हूँ मैं आज अपने बाँध 
कि मेरे शब्द तुम्हे भिगोने को बेताब हैं 
जरा इधर देखो , तुम देखो मेरी आँखों में 
एक प्यास ठहरी सी है इन काले घेरों में
जो बस तुम्हारे बरसने की राह देख रही है ।।
जब आँखों से नीचे उतरो , तो जरा देखना
जरा ध्यान से देखना इन ओंठो को 
जो न जाने कब से तड़प रहे हैं 
तुम्हारे ओंठों पर जाकर ठहर जाने को ।।
बस इतना ही नही है, सुनो 
ध्यान से सुनो मेरी रूह की आवाज
जो फ़रियाद कर रही है तुमसे 
कि उसे मिला लो तुम खुद में,
और दो रूहों को हो जाने दो एक 
इस जनम,अगले जनम और सातों जनम तक !!!

कितना बदल गए हो तुम !!!

इक चुपचाप सी शाम में जहाँ हवा ठहर सी गयी थी जहाँ बस 1 गज के फासले में 4 साल का इन्तजार छुपा बैठ था बेंच जिस पर हम बैठे थे, खुश थी हमें फिर से एकसाथ देखकर ।। बेंच के सामने वाला फूल आज मस्ती में नाच रहा था जो कभी हमें देखकर जलन के मारे सिर घुमा लेता था ।। उन खामोशियों में बिन आवाज उसने अपना बैग खोला कुछ ढूंढा और वापस बंद कर दिया कहा कुछ भी नहीं.. मैं भी तो नही पूछ पाया बस देखता रहा उसके चेहरे को चुपके से , तिरछी निगाहों से सब ठहरा हुआ , मैं , वो , आवाज वह हिली , इस बार अपनी जुल्फों के लिए जुल्फें सही हुई, ओंठ बुदबुदाये मगर आवाज ...वह तो अब भी नही हुई इन्तजार लंबा होता रहा शाम गहराती गयी दिल में कुछ आता रहा, जाता रहा जब ओंठ थक गए चुप रहकर मन हुआ कि कह दूँ अभी भी वहीँ आँखें, वही जुल्फें वही चुप सा रहना , बिलकुल नही बदली तुम और देखो मैं भी तो नही बदला तुम्हे चाहता हूँ उसी तरह अब भी की मेरे कुछ कहने से पहले ही आवाज हुई और कह दिया उसने कितना बदल गए हो तुम ।।।