आसमां छोड़कर कहाँ जायेंगे !!!

सुबह के निकले ,थक-हार कर वापस यहीं आयेंगे । 
परिंदों  का घर है आसमां, छोड़कर कहाँ  जायेंगे ?
सावन भी है ,शाम भी  है , आने भी दो बारिश को 
इन्तजार में बैठे हैं  मोर, नाचने और कहाँ जायेंगे ?
गुलशन में  फूलों को खिलने दो ,महकने दो
गर फूल ही न रहे, भौरे पेट भरने कहाँ जायेंगे ?
सुन भी लो, कह भी दो ये रात का आखिरी पहर  है
सुबह किसे पता तुम किधर ,हम कहाँ जायेंगे ?


बस तेरा खवाब आया था !!!

कुछ ठंडक सी थी फिजा में
हवा बहकी थी ,कि कोई  तूफ़ान आया था
रोशनी भी हुई थी जहाँ में
बिजली चमकी थी, कि कोई  चाँद निकला था
होश आया तो पता चला
कुछ  नही हुआ था
बस तेरा खवाब आया था  ।

छम-छम करती आओं न !!!

एक बेगाने से मौसम में
 एक अनजाने से मिलने
छम -छम  आवाज करती आई  थी  तुम
रिमझिम-रिमझिम बरसात संग लायी थी तुम
तुम्हे देख  जाने कितने ख्वाब जागे थे मन में
न जाने कितने अरमान उमड़े थे मुझमे
पैरों से पानी को उछालती 
अपने भीगते आँचल को हवा में लहरा
चेहरे को ऊपर उठा आँखे बंदकर
अपने ओठो पर ठहरी बूंदों को सहलाती
मेरा नाम अपने ओठों पर लायी थी तुम
कुछ शरारती बूँदें तुम्हारे गालों को चूमती
तुम्हारे कपड़ो को भेदती
भिगो रही थी तुम्हारे तन-मन  को
तभी हवा का सर्द झोंका आया था
तुम सर से पाँव तक कांपती
छप -छप  करती मेरी तरफ भागती
मुझमे लिपट गयी थी तुम
और फिर  घंटों बारिश में
एक ही बूँद  से
भीगे  थे हम दोनों
वो बारिश फिर  आई है
तुम भी छम-छम करती आओं न
फिर से हवा का झोंका आये
 फिर से तुम लिपटो मुझसे
और एक ही बूँद से भीगें  हम दोनों ।