अधूरे इश्क के बाद बचा उजाड़ जिस्म
दर्द, उदासी और तन्हाई की पैरहन पहने
अब ख़ामोश रहने लगा है, बहुत खामोश
जैसे बसंत आने का ख्वाब आंखों में लिए
कोई पेड़ अपनी आखिरी सांस तक
जिस्म पर दो-तीन सूखी पत्तियां पहने
चुपचाप खड़ा रहता है इक उम्मीद में...
लेकिन बसंत आने में अभी बहुत देर है !
रूह अक्सर शिकायत करती है जिस्म से
थककर बूढ़े और कमजोर हो गए हो तुम
ये रूह अब नया जिस्म पहनना चाहती है
मगर जिस्म है कि फिर भी जिये जा रहा है
जैसे सूखे और अकाल से पीड़ित इलाके में
प्यास से तड़पता हुआ कोई पंछी
रोज चक्कर लगाता है सूखे तालाब का...
मगर वहां पानी की इक बूंद भी नहीं है !
जिस्म भी पंछी हो गया है, पेड़ हो गया है
खड़ा है उम्मीद का एक सिरा पकड़े हुए
आस में, उम्मीद में, इंतजार में, इश्क
बसंत लाएगा,बरसात लाएगा,जवानी लायेगा !