कहने को यूँ तो सर्द बहारें मुझसे रूठी रहीं रात भर |
कमबख्त बारिशों ने आसमां को खुलने ही ना दिया
पागल निगाहें बादलों में चाँद को ढूंढती रही रात भर |
चाहता था कि मै भी अंधेरो में बैठूं जरा कुछ देर
उसके अहसास तो घर के कोने-कोने में बिखरे पड़े थे
मेरी गोद में उसकी यादें बेखबर सोती रही रात भर |
कहके गयी थी कि मुड़ कर इधर कभी ना देखूंगी
फिर वो कौन थी जिसकी आहट आती रही रात भर |