चलो अब घर लौट चलें ,शाम ढलने लगी है ।
परिंदे वापस घर जाने लगे ,रात बढ़ने लगी है ।
रास्ते तो दुश्मन हुए ,नज़ारे भी बहका रहे है
धीरे धीरे ही सही पर मदहोशी छाने लगी है ।
यूँ तो उसने छुपकर कहानियाँ लिखी है बहुत
रात हमारी कहानी खुले-आम लिखने लगी है ।
कुछ ऐसा कर दो ए सनम ,हो जाऊं मै तुम्हारा
फ़िजा भी मेरी आस में मेरे साथ चलने लगी है ।